Monday, 10 September 2012

प्रेम के सूत्र---ओशो की नज़र में----प्रेम और अहंकार---ओशो की नज़र में


प्रेम,एक प्रतीक्षा है.

प्रेम,अवेटनिंग है.

प्रेम,एक धन्यता है.

प्रेम,निष्प्रयोजन है.

प्रेम,एक परपज है.

प्रेम,कोई शास्त्र नहीं.

प्रेम,कोई सिद्धांत नहीं.

प्रेम,कोई परिभाषा नहीं.
 
प्रेम सदैव झुकने को राजी है,अहंकार कभी भी नहीं.
प्रेम, जब भी कुछ देता है,खुश होता है,अहंकार,जब भी कुछ लेता है खुश होता है.
प्रेम,निष्प्रयोजन है,अहंकार,एक प्रयोजन है,एक परपज है.
प्रेम,टूट कर भी आनंदित है,अहंकार,पाकर भी आनंदित नहीं होता.
प्रेम,देने की भाषा समझता है,अहंकार लेने की.

9 comments:

  1. वाकई प्रेम के कई रूप है..कभी बहुत आसान सा लगता है और कभी न सुलझने वाली पहेली के जैसे..सुन्दर रचना..बधाई

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  2. बिल्कुल सही
    सुंदर रचना
    बहुत बढिया

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  3. "प्रेम,देने की भाषा समझता है,अहंकार लेने की."
    बहुत खूब...|

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  4. सार्थक चित्रण .....बहुत खूब

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  5. अनेकों रंगों से सजा प्रेम..

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  6. एक ही प्रेम के कितने रूप ... जो जैसा चाहे प्रेम उसको उसी रूप में मिलता है ...
    सार्थक चिंतन ...

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  7. प्रेम एक रूप अनेक |बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
    आशा

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  8. १००% सुच्ची परिभाषा ...

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