पतझड की पाती—(पत्ता)
आशाओं की पाती सी(पत्र)
आज
विलग हुई डाली से
कल, नई
कोपलें फूटेगीं
उन डाली पर,जिन पर—
थे हम,आज की पाती सी—(पत्ता)
होली,खेल रहा,सूरज,नित-नित
किरणों की पिचकारी भर-भर
खुद
ही,कैद हुए,खुद के अंधियारों में
अब,तुम,
इंद्रधनुष तो ढूंढो------
रात,चांदनी----खिल-खिल---
छिटक रही,नित-नित,छतों पर
खुद
को, खुद के शोलों से,चटकाए हो
अब(अपने
विषादों पर)कुछ ठंडी छीटें तो दे दो
अंगारी धरती पर,हर-दिन
नाज़ुक से,फूल,चटकते—
उम्र,गुज़रती,कैद हुई,अपनी ही खुशबू में
अब,तुम,उनको भी तो,छू लो----
घुमड-घुमड,बादल,रोज भटकते
ना जाने,कैसी-कैसी जुगाड लगाते
चटकी धरती की प्यास बुझाने
मीलों-मील का सफ़र नापते—
अब, तुम भी,उनको,आवाज तो दे दो---
बढिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत ही सुन्दर और अर्थमयी रचना..
ReplyDeleteरात,चांदनी----खिल-खिल---
ReplyDeleteछिटक रही,नित-नित,छतों पर
खुद को, खुद के शोलों से,चटकाए
अब(अपने विषादों पर)कुछ ठंडी छीटें तो दे दो
बहुत सुंदर रचना..
बहुत सुंदर रचना
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