नशे-नशे,में
फ़रक नहीं
फ़रक है,तो---असर नहीं
नशा हो---बोतल का
या हो, पीडाओं से ज़ाम भरा
या, आंसू की गर्माहट
सांसो में,हो आई उतर
या कांधे, ढलक गये हों
अपनों की अनदेखी से—
या,
अपनों ने हो छला
रख,
अपना हाथ,कांधों पर
या,
तिरष्कार के तीर बिंधे
लहू, शिराओं से,भर आया हो,ज़ामों में
या,दरवाज़े से विदा हुई—
अर्थी,कोई,
अपने की—
घर,खाली-खाली,कोना,खाली-खाली
भर
आया हो, ज़ामों में----
नशा,तो
बस नशा है—
जब,होश
ना हो ’अपने’ का
’अपने’
को दूर छिटक---
ज़ाम,थाम---चलें,चलें—
यह,तेरी मधुशाला है—
यह, मेरी मधुशाला है—
ज़ाम,
वही,कुछ भरा-भरा
कुछ-कुछ,खली-खाली, सा
हर एक,यहां,पीता है—
हर
एक, यहां,जीता है—
फ़रक,नशे की चाहत का—
कोई,अधभरा,कोई,
भरा-भरा,पीता है
कभी, आह,भरी हो,ज़ामों में
तो,आंसू
भी,छलक-भर आएं है
कभी,चांदनी की परछाईं
इठलाती---------तो
कभी,धूप,चटकती,जीवन की
जाय,छलक-छलक,ज़ामों में
कोई, यादों की गलियों में—
चला,ढूंढने, महखानों को—
तो,
कोई सपनों को ले—
खाली-खाली,ज़ाम,चला—
कोई, भटकन की, गलियों में-
फ़ांक रहा खाक,ताउम्र, मदहोशी की
तो,कोई, मूंद आंख----
बैठ
गया, मौलश्री की छांव तले-
हर कोई,यहां—पीता है—
बस,
पीता है,बस जीता है
कोई,भर-भर ज़ाम,झूमता,सूफ़ी सा
तो,कोई, राजा से फ़कीर बना—
बस,एक गुज़रिश, नौसिखिये की—
पी—पी—बस,
जी---
बहुत सुन्दर वर्णन मैम
ReplyDeleteनशा हर कहीं फैला हुआ है....उन्माद का, अवसाद का
बस रंग अलग अलग हैं
आभार
सबको कारण उपस्थित..
ReplyDeleteअलग ही अंदाज में रची सुंदर रचना...
ReplyDeleteसादर।
बढ़िया रचना
ReplyDeleteज्ञान दर्पण
वाकई नशा तो नशा है।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
...नशा तो नशा है।
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteअपनों से छला मन कहाँ धीर पाए ???