Thursday 17 November 2011

Rebuilding A House---

ज़िन्दगी की इमारत-मरम्मत की मुहताज़ है
कभी-कभी इसके नक्शे भी बदलने होते हैं
इसकी बुनियाद को खंडहर ना होने दिया जाय
और,खुद को,इन खंडहर की टूटी ईंट ना बनने दिया जाय---
यही जीवन-सत्य है.
कल मेरा,एक ऐसी खबर से सामना हुआ,जो आम-खबर थी.हर दिन,ऐसी खबरें,हमारे आगे-पीछे
अपनी गर्दिशों की धूल उडाती रहतीं हैं,जिन्हें हम कपडों पर पडी धूल की तरह झाड कर आगे निकल जाते हैं.
   रोज़ सुबह,समाचार-पत्रों का एक बडा हिस्सा ऐसी ही खबरों के रंगों से रंगे जा रहें हैं.
मेरे पडोस में एक परिवार रह रहा था.उस परिवार में ,पति-पत्नि,उनका एक बेटा व एक बेटी,
साथ में उन सज्जन की मां भी साथ रहती थीं.
जब कभी,मेरा उनसे आमना-सामना हुआ,हमेशा ही उनकी पत्नि ने मुझे विश किया,और साथ ही
घर आने का छोटा सा आग्रह भी.
  अक्सर,वे अपनी पत्नि के साथ,बालकनी की रेलिंग से लटके से खडे रहते थे,सिगरेट के लंबे-लंबे
कशः लेते हुए.
   एक दिन,करीब सुबह दस बजे,उन सज्जन ने बाथ के रोशनदान से रस्सी का फ़ंदा लगा कर
आत्महत्या कर ली.
  यह एक अप्रत्याशित खबर थी,जिस पर कोई भी,सहज विश्वास नहीं कर सकता था,क्योंकि कुछ देर पहले ही,कई लोगों ने उन्हें चिरपरिचित अवस्था में, बालकनी में खडे देखा था.
 अविश्वास की स्थिति में,मैं पढे हुए समाचार-पत्र के पन्नों को दुबारा पलटने लगी.
उस समाचार-पत्र में,मुझे ऐसी कोई खबर नहीं मिली जिसे दुबारा पढा जाय.अतः पास पडी,
पालो कोल्हो की पुस्तक ’ लाइक द फ़्लोइन्ग रिवर ’ उठा ली और उसके पन्ने पलटने लगी.
अचानक,एक शीर्षक पर नज़र पड गई—री बिलडिन्ग ए हाउस.
यह एक-डेढ पेज का लेख था,जो संस्मरण के रूप में था.
  जिसमें एक ऐसे आदमी की कहानी है.जो परिस्थितिवश कर्ज़ में डूब जाता है,और जीवन के लिए देखे सपनों को वह पूरा नहीं कर सकेगा.इन हालातों में उसने आत्महत्या करने की सोची.
  ऐसी मनःस्थिति से घिरा,एक दोपहर ,वह कहीं किसी रास्ते से गुज़र रहा था,तभी उसकी नज़र
एक मकान पर पडी,जो खंढहर हो चुका था.उस खंढहर हुए मकान को देख कर,वह आदमी सोचने
लगा कि---मेरी हालत भी इस मकान जैसी है.
  उसी क्षण एक विचार उसके मन में कोंधा—क्यों ना इस मकान की मरम्मत कर दी जाय.
उसने उस मकान के मालिक का पता लगाया व उसके सामने अपना प्रस्ताव रखा. उस मकान के मालिक ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उस मकान को पुनःजीवन देने के लिये आवश्यक व्यवस्था कर दी,हालांकि,मकान-मालिक समझ नहीं पा रहा था कि इस जर्जर मकान की
मरम्मत करके इस आदमी को क्या हासिल होगा.
   जैसे-जैसे,उस मकान की मरम्मत होती गई,वैसे-वैसे वह आदमी को लगने लगा,कि उसका जीवन भी इस जर्जर मकान की तरह सुधरने लगा है.
कहने का आशय है, उस मकान की मरमत्त करके, उसे जीवन की सच्चाई समझ आने लगी.
जीवन की इमारत भी,हमेशा मरमत्त मांगती है.
   समय-समय पर,इसकी टूट-फूट को ठीक करते रहना चाहिए और मन से तैयार रहना चाहिए
कि ज़रूरत पडने पर,इसके नक्शे को भी बदलना पडे तो कोई हिचक ना हो.
  क्योंकि,इमारत का महत्व तो है लेकिन उसमें रहने वाले अधिक महत्व्पूर्ण हैं.यदि रहने वालों का आस्तित्व नहीं है,तो इमारत तो खंडित होगी ही. रहने वाले जहां भी डेरा डाल लेते हैं,इमारत वहीं खडी
हो जाती है
   परंतु,आत्महत्या जैसा कदम उठा कर,उन्होंने जीवन के,अन्य गंभीर मसलों की भी हत्या कर दी.
उन्होंने,अपने व्यापार,नफ़ा-नुकसानोम को इतनी अहमियत दे दी,कि अपनी पत्नि,बच्चों व विधवा मां
के आज को भूल गये,आने वाले भविष्य की आहट ना सुन सके.
   वे आंसू,जो उनके ना होने पर बहेंगे,उनकी कीमत कैसे आंकी जाएगी,बच्चों की सूनी आंखे
जो अपने पिता की मौजूदगी को ढूंढेगी ,उनका खलीपन वे नाप नहीं सके.
  यह तो इस त्रासदी का भावात्मक पक्ष है.एक दूसरा पक्ष भी है,जो हम ऐसी परिस्थियों का सामना
करते हुए भूल जाते हैं---वह यह,रास्ते बहुत हैं,जिन्हें ढूंढा व पाया जा सकता है,लेकिन हम केवल रास्तों की पगडंडी पर घिसटते ही रहते हैं.
  होता यह है,अक्सर ही,संभावनाओं के दरवाजों को हम खोल नही पाते हैं,जो उढके होते हैं ,उनको हम और बंद कर देते है.
  अतः,जीवन जीते ही रहना चाहिए,उसे छूते ही रहना चाहिए,उसकी चाल को समझते रहना चाहिए
कुछ भी तो स्थिर नहीं है,सब कुछ बदल रहा है,संभावनाएं-असंभावनाएं बन रहीं है.असंभावनाएम,संभावनाएं
ओशो कहते हैं---
आस्तित्व संभावनाओं से भरा पडा है,हर-पल आस्तित्व हमारी रक्षा कर रहा है..
                                                मन के--मनके

9 comments:

  1. जीवन सप्रयास बचाकर रखा जाये।

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  2. जब तक जीवन है तब तक संभावनाएं सांस लेती हैं... जीवन अनमोल है!
    आपका यह आलेख अपनी बात प्रेषित करने में सफल है!

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  3. खूबसूरत विचार...

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  4. आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट भोजपुरी भाषा का शेक्शपीयर- भिखारी ठाकुर पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद

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  5. सुन्दर विचार और विचार करने को प्रेरित करता लेख निम्न सटीक है
    भ्रमर ५

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  6. -वह यह,रास्ते बहुत हैं,जिन्हें ढूंढा व पाया जा सकता है,लेकिन हम केवल रास्तों की पगडंडी पर घिसटते ही रहते हैं.
    होता यह है,अक्सर ही,संभावनाओं के दरवाजों को हम खोल नही पाते हैं,जो उढके होते हैं ,उनको हम और बंद कर देते है.
    अतः,जीवन जीते ही रहना चाहिए,उसे छूते ही रहना चाहिए,उसकी चाल को समझते रहना चाहिए
    कुछ भी तो स्थिर नहीं है,सब कुछ बदल रहा है,संभावनाएं-असंभावनाएं बन रहीं है.असंभावनाएम,संभावनाएं

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  7. अपना गम लेके कहीं और ना जाया जाये...
    घर की बिखरी हुई चीजों को सजाया जाये...

    आईडिया बुरा नहीं है...

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  8. osho ne kha tha jhana ladayee hai vhana hm gair hazir hain jahan ladayee nahi hai vhan hm talwar bhanj rhe hain .

    Na samjh bn na hr or nirasha dekho .
    Mauj men doobo na hr or tamssha dekho.
    Jindgi dard ki pustak ise padh lena .
    Vyakaran chhod kr anubhooti ki bhash seekho .

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