घन-घोर,घटाएं,घुमड-घुमड
घनानंद सी,दमित किये,उजियारे को
क्षितिज़-देश पर छाई है----
सूर्य-रथ के अश्वों को ,अंध किये
कहीं रोंदते, हाथी पथरीले
भविष्य,मूक-जनमानस के
कहीं,उलझ रहीं,सांसें अटकी सी
दिशा ढूढती,साइकिल के चाकों में
कहीं,दिशा-भ्रमित,ढोते अपनों के पुण्यों को
मूक-अंध-अश्व सा,किया जनमानस को—
कहीं,रथ पुनः हुए,अवतरित-----
भविष्य-दृष्टि-विहीन,उनके चाकों के
राजनीति के चोरों ने,सेंध लगाई
घर-घर के,कोने-कोने में-----
हर-दिन, झूटे-मंच, सजे हैं
नित-नए,झूठे वादों से---
समाचारों में भी,वही छपे नाट्य
वही,संवाद- वाद – विवादों के
नित-नये-मंच पर हो आसीत
नित-रोज, जुटाते, भीड खरीदी सी
ताली भी बजवाते हैं-----
नज़रों के छुपे इशारों से
हर-रोज, आंकडे रटते है
रट्टू – तोतों के पाठों से
बंटता ग्यान,रोज-रोज,सूखी रोटी सा
कितना खाएं उनको,चिपके पेट,भूखों से
कीचड,रोज उछल रही,औरों पर
जिस कीचड में,खुद सने हुये
योग-गुरू जो थे, अब-तक
स्वम, योग-गणित में,उलझे-उलझे से
एक बार,देश बंटा था—
गैरों के निष्ठुर हाथों से
अब, प्रितिदिन, बंट रहा,प्रांत-प्रांत
अपनों के निष्ठुर हाथों से---
बदले में,एक कुर्सी की, अतृप्त-प्यास
वह भी , केवल,पांच – वर्षों की---
इतना,स्वंम-स्वार्थ –लोभ,तुलता है
कल-आज-कल ,देश के सपनों से
अब,कब ,एक चाण्कय खोलेगा
बंधी – शिखा की गांठों को
खोजेगा , कब,धूल-भरी-बीथियों में
चंद्रगुप्त के बिखरे बचपन को—
अब, कब होगा ,भंग-दंभ
घनानंद की टेढी , भृकुटि का
अब,कब, बांधेगा ,पुनः शिखा(चाण्क्य कोई )
खोली थी,जो कभी, दिशा-भ्रमित-दंभ की,ढ्योढी पर.
मन के - मनके
प्रतीक्षा है।
ReplyDeleteभावपूर्ण चिंतन है .. आज के राजनीतिज्ञ चाणक्य को समझ भी नहीं सकते ...
ReplyDeleteफिर भी उम्मीद तो है कि शायद कभी ऐसा हो ..
चाणक्य सभी अपनी शिखाएं बाँध बैठे हैं
ReplyDeleteघनानंद को सलाहें दे रहे अब मुल्क का क्या हो?
सुन्दर चिंतन... सार्थक अभिव्यक्ति...
सादर...
संगीता आंटी ने सही कहा कि आज राजनीतिज्ञ चाणक्य को समझ ही नहीं सकते।
ReplyDeleteसादर
अब,कब ,एक चाण्कय खोलेगा
ReplyDeleteबंधी – शिखा की गांठों को
खोजेगा , कब,धूल-भरी-बीथियों में
चंद्रगुप्त के बिखरे बचपन को
जाने कब ???? हम सभी को प्रतीक्षा है ..
बेहतरीन अभिव्यक्ति .
आज के चाणक्य जड़ों का उन्मूलन करने का व्रत पता नहीं कब लेंगे !
ReplyDeletekaash aaj ke chaanaky us jaise chaanaky hote jo desh ke vibhajan ka nahi akhand bharat ka sapna dekhte...inka un chaanakye se koi mail nahi.
ReplyDeletebahut sahakt lekhan hai aapka.
aapki profile bhi padhi aur apke bare me jankari mili.
aabhar.
वाह! वाह! बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteसंगीता जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ जी.
बहुत बहुत आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
कविता का ओज प्रेरित करता है।
ReplyDeleteaj apka blog kholne ka mauka mila. bahut hi gambhir rachnayen padhne ko mili . apke yatharth chintan ke dharatal ko naman hai .
ReplyDeleteयही है हमारा और हमारे समय-दोनों का सच!
ReplyDeleteभावपूर्ण चिंतन ......सार्थक अभिव्यक्ति
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