Friday 3 June 2011

जीवन की किताब के एक पन्ने से----

अभी कुछ दिन पूर्व"मन के-मनके, ब्लोग पर मैने एक लेख डाला था,शीर्षक था,’जीवन चुनाव नहीं,स्वीकार्य-भाव,है.
यह लेख मैने ओशो द्वारा उनके प्रवचनों में ,उनकी कही प्रवन्चनाओं में से कुछ विचारों को चुन कर लिखा था.
ओशो,जो भी कहतें हैं,वह सत्य है,जो सत्य के दर्पण में सत्य का ही प्रितिबिम्ब है,उसकी छवि है.
मुझे,आस-पास बिखरे जीवन के पन्नों को पलटकर पढना व उन्हें समझने का प्रयत्न करना अच्छा लगता है.
अपने-आप से छिटक कर विराट दायरे में प्रवेश कर जीवन की विराटता को उसकी समग्र विभिन्नताओं को एक रूप में देखना विस्म्रित करता है.
इसी संदर्भ में--कई बार एक पात्र मेरे मानस-पटल पर आया और सोचा उस पात्र पर कुछ लिख सकूं,जूशो द्वारा कहे उक्त सत्य को जी रहा है व उस सत्य के कुछ तो करीब है.
मेम जिस शहर में रहती हूं,वह केवल भारत के नक्शे पर ही नहीं वरन सन्सार के उन महानतम नगरों मेम से प्रमुख है है जो एथासिक ध्रूऊहर के प्रतीक हैं.
वह शहर आगरा हैजो इतिहास के पन्नों में एक अभूतपूर्व प्रेम की कहानी को ताजमहल के रूपमे ं सजोए हुए है.
जिन महिला के बारे मेम लिख रही हूं वे बहुत ही साधारण महिला है,घर-घर बर्तन साफ़ करके अपना भरण-पोषण करतीहैं.उम्र ७५ वर्श से अधिक ही होगी,दिखता भी कम है,सुनाई भी कम देता है.उम्र ने कमर भी झुकाद ी है और्हाथ-पैरों में कम्पन भी रहताह ै.
पति को गुज़रे वर्शों बीत गए.दो-तीन बेटों की ग्रुहस्ती मेम जैसे-तैसे खिप रहीं है.
बडे बेटे के मरने के बाद उसकी पत्नी तीन मासूम बच्चःऒं को छोड कर चली गई.
इन सब हालातॊं के बीच उक्त महिला अपने अनाथ नाती-पोतों की देख-भल कर रही हैं.सुबह से शाम तक घर-घर जाकर काम करना,काम पर आने से पहले बच्चों के खानेकेी व्यवस्ता करके आना,दिन छिपे,घर लौटना,फिर भच्चोंके  लिए अंधी आंखों से खाना बनाना.
जब भी मिलती हैं--ऊंची आवाज में कहती हैं---बहूजी,राम-राम,बाल-बच्चे सब कुशल से हैं .
मैने कभी भी उनको अपनी जिन्दगी की किताब के पन्ने पलटते नही देखा.अगर कभी किसी ने कहा-अम्मा,अब आराम करो,तो एक ही जवाब--बहूजी,चलती-फ़िरती हूं तो शरीर चल रहाहै नही तो चारपाई से लग जाऊंगी,कौन सेवा करेगा.,
न,मरने की चिन्ता,न सेवा की दरकार-----------
यही ओशो का--स्वीकार्य-भाव  है.
                                                                          मन के-मनके

7 comments:

  1. स्वीकार्य भाव से कुछ भी भार नहीं रह जाता जीवन में।

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  2. सम भाव...सुख और दुःख...दोनों को सहने की क्षमता देता है...

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  3. प्रेरक...

    ग्रहणीय जीवन और विचार....

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  6. आभार इन विचारों को प्रस्तुत करने का.

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