नील गगन में, नीलाम्बर से,
चहु ओर दिशा में, खिल जाओ,
उस पार तुम्हें मैं देख सकूं,
इस पार ,मुझे तुम,पा जाओ,
बादल के झुरमुट में,छुपकर,
ओझल क्यों हो जाते हो ,
मेरे हर सपने में आकर,
गीत-विरह के,क्यों बनजा ते हो,
निर्जन-मन की दग्ध-शिला पर,
कब तक भस्म करूं मैं तलुवों को,
एक तुम ही हो,इन सपनों के सौदागर,
किस राह,खडी रहूं ,आस लिए,किस आगुन्तुक की,
यह तुम भी जानो हो,पहचानो हो,
फ़िर क्यों, निर्मोही से हो जाते हो,
द्वार रखें हैं,उढ्काए से मैने,
जब भी चाहो,आजाओ-----,
आखों में,छवि तुम्हारी,
ढ्योडी पर ले आस खडी हूं,
इस आस को बेआस न करना,
बादल घिरने से पहले,दस्तक दे देना,
नील गगन में नीलाम्बर से------
मन के- मनके
चहु ओर दिशा में, खिल जाओ,
उस पार तुम्हें मैं देख सकूं,
इस पार ,मुझे तुम,पा जाओ,
बादल के झुरमुट में,छुपकर,
ओझल क्यों हो जाते हो ,
मेरे हर सपने में आकर,
गीत-विरह के,क्यों बनजा ते हो,
निर्जन-मन की दग्ध-शिला पर,
कब तक भस्म करूं मैं तलुवों को,
एक तुम ही हो,इन सपनों के सौदागर,
किस राह,खडी रहूं ,आस लिए,किस आगुन्तुक की,
यह तुम भी जानो हो,पहचानो हो,
फ़िर क्यों, निर्मोही से हो जाते हो,
द्वार रखें हैं,उढ्काए से मैने,
जब भी चाहो,आजाओ-----,
आखों में,छवि तुम्हारी,
ढ्योडी पर ले आस खडी हूं,
इस आस को बेआस न करना,
बादल घिरने से पहले,दस्तक दे देना,
नील गगन में नीलाम्बर से------
मन के- मनके
मौसम का असर ब्लॉग पर देखने को खूब मिल रहा है...
ReplyDeleteनील गगन में, नीलाम्बर से,
ReplyDeleteचहु ओर दिशा में, खिल जाओ,
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बहुत उम्दा रचना!
एक तुम ही हो,इन सपनों के सौदागर,
ReplyDeleteकिस राह,खडी रहूं ,आस लिए,किस आगुन्तुक की,
यह तुम भी जानो हो,पहचानो हो,
फ़िर क्यों, निर्मोही से हो जाते हो,
कम शब्दों में कहूँगी .....बहुत खूब