Thursday, 18 June 2015

एक शाम—सुबि के साथ



एक शाम—सुबि के साथ 

कल रविवार था.
एक ऐसा रविवार जो कुछ हट कर बन गया,सुबि के साथ.
अब आप पूछेगें ही कि यह सुबि कौन है---क्या करती है---आदि-आदि.
तो,मैं बताने जा रही हूं—कि यह सुबि कौन है?
जिंदगी भी क्या अजीब चीज है,एक पिटारा,एक अनबूझ पहेली,एक रास्ता तो कभी-कभी
लगता है कि बस बहुत हो गया अब,मिल गयी मंजिल,नहीं यह सब क्या है,क्यूं है,कैसा है??
और हम चूक जाते हैं इस पिटारे में से निकालने में---जादू का झंडा,आलू का पराठा,दही के भल्ले,गोल-गोल गोलगप्पे,फालूदा और लकडी की डंडी पर चुपकी मेवे वाली कुल्फी---
और जूडे की बेंडी,बेले की माला,रंगीन चप्पल,फटफटाती जूतियां---
ओह!! क्या कहने जा रही थी---खोल कर बैठ गयी पिटेरा—--जिंदगी का.
सुबि—मेरी पोती,मेरी ट्यूटर—जिससे सीखती हूं—कम्प्यूटर—बार-बार भूलती हूं और पूछती हूं—
और वह सब्र से बार-बार वही चीज दुहरा देती है.
मैं ओशो को पढ रही थी—एक शब्द से वे पहचान करा रहे थे—सिन्स्क्रोनोंसिटी---एक नया शब्द जो बाद में शब्दकोष में शामिल किया गया---
उसका शाब्दिक अर्थ करना सटीक नहीं हो पाएगा—हां कुछ चीजें गूंगे का गुड हो जाती हैं.
ठीक इसी तरह यह शब्द भी है---सिनक्रोनोंसिटी.
ओशो ने अपनी जीवनी (स्वर्णिम बचपन ) में इस शब्द का उल्लेख किया है एक घटना के माध्यम से--.
’ठीक जिस सज्जन के बारे मैं बात कर रहा था,उनका पूरा नाम था प.शम्भुरत्न दुबे.हम सब उनको शम्भुबाबु कहते थे.
जिस क्षण शम्भुबाबु और मैंने एक-दूसरे को देखा,कुछ हुआ.उसी क्षण हम दौनों के हृदय एक हो गये---विचित्र मिलन हो गया.जिसे कार्ल गुस्ताव जुंग सिनक्रोनिसिटी कहते हैं.
मैं तुम्हें कह रहा था कि फ्रेंडशिप.मित्रता प्रेम से ऊंची होती है---प्रेम तो पार्थिव है,मित्रता इससे थोडी ऊंची है---फ्रेंडशिप,मैत्री सबसे अधिक मूल्यवान है---मैत्री तो सीगल है—हां जानाथन की तरह.यह बादलों के भी ऊपर उठती है.) ओशो,स्वर्णिम बचपन से,साभार.
हां,तो मैं बात कर रही थी—सुबि की—हममें में भी शायद मित्रता का ही कोई शूत्र हो—मैं ऐसा ही सोचती हूं—क्योंकि हम मिले कुछ समय के लिये और सिनक्रोनोसिटी घट गयी!!!
यदि मैने ओशो को ना पढा होता तो शायद—इसे ना समझ पाती.
अब कहना पडेगा—डीअर सुबि से—Don,t say—granny—so harsh—not beautiful—just call me ‘uma’ –and feel the ‘Cinchronocity’.
कुछ रिश्ते तो बने बनाये हमें मिल ही जाते हैं---कुछ बनाने-निभाने पडते हैं---और कुछ उतरते हैं—सीगल (एक पक्षी सफेद-नीले पंखों वाला ) की तरह.
हां, अभी-अभी तो तुमने भी कहा था—Age  doesn’t matter---so carry on---dear Subi!!!
मुझे पुकारो—मेरे नाम से,मित्रता के नाम!!!











5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-06-2015) को "समय के इस दौर में रमज़ान मुबारक हो" {चर्चा - 2012} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. dhanyavad for selecting-ek shaam subi ke saath'
    into the links for charchaa manch.
    Regards,Shastree jee.

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  3. दोस्ती मन से होती है न की उम्र से ... और दिल उमे में जिस्से हो जाये अच्छा ... फिर बच्चे तो वैसे भी मन के सच्चे होते है ....

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  4. एकदम सच्ची जी..दोस्ती का क्या लेना देना उम्र से.......

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