1.ये छोटी-छोटी बातें हैं
जैसे धूप मुडेरों की
अब आयी---अब जाती है
जैसे छांव अटारी की
२.मैंने अपनी राह चुनी
सब अपनी-अपनी चुनते हैं
मैंने अपना दर्द पिया
सब अपना-अपना पीते हैं
३.ये पथ तेरे हैं---
कांटे तेरे,फूलों की बाडें तेरी
मैंने तो पत्थर डाले हैं
विराम-चिन्ह—घायल-स्मृतियों के
४.कुछ तो यारो---बात करो
अपने-अपने आंगन की
भोर हुए—क्या चिडियां चहकीं?
सांझ ढले—क्या सोयी तुलसी?
५.तृप्ति-अतृप्ति के दो पन्नों की
यह किताब अधूरी है---
मुक्ति-बोध के हों हस्ताक्षर
बस---यह बात जरूरी है
६.एक निमंत्रण सपनों का
पडा हुआ था—ड्य़ोढी पर
दरवाजा--- जब उढकाया
खडा हुआ था---अपना सा
पु्नःश्चय:
सभी सह-ब्लोगरों को,एवं मन के-मनके के पाठकों को प्रकाश-पर्व की मंगलकामनाओं के साथ.
प्रभु,धरा पर अपना प्रकाश-पुंज फैलाएं.
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 23-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1775 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार ।
बहुत सुन्दर . दीपोत्सव की मंगल कामनाएं !
ReplyDeleteनई पोस्ट : दीपावली,गणपति और तंत्रोपासना
सुन्दर प्रस्तुति........दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteख़ूबसूरत अभिव्यक्ति… दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteसादर अभार,
ReplyDeleteदीपोत्सव के पर्व पर प्रभु जन-जन में प्रकाश करें.
मैंने अपनी राह चुनी
ReplyDeleteसब अपनी-अपनी चुनते हैं
मैंने अपना दर्द पिया
सब अपना-अपना पीते हैं
बहुत सुन्दर !
सादर !
ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति…
ReplyDeletethanks sanjayji.
ReplyDeletemiss ur morning lines.