एक सुबह अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के
किनारे पंहुच गया था.उसका पैर किसी चीज से टकरा गया.झुक कर देखा तो पत्थरों से भरा
एक थैला पडा था.सूरज उग आया,झोले में से पत्थर निकाल कर, शांत नदी में एक-एक कर के
फेंकने लगा.
धीरे-धीरे सूरज की रोशनी चारों ओर फैलने लगी,तब तक वह सारे
पत्थर नदी में फेंक चुका था, सिवाय एक पत्थर के,जो उसके हाथ में रह गया था.
सूरज की रोशनी में जैसे ही उसने उस पत्थर को देखा उसके दिल
की धडकन रुक गयी.जिन्हें वह पत्थर समझ कर फेंक रहा था वे हीरे-जवाहारात थे---वह
रोने लगा.
इतनी सम्पदा उसे मिली थी उसके जीवन भर के लिये ही नहीं अनंत
जन्मों के लिये भी काफी थी.
लेकिन फिर भी मछुआरा भाग्यशाली था क्योंकि अंतिम पत्थर
फेंकने से पहले सूरज निकल आया और उसे दिखाई दे गया कि जो उसके हाथ में पत्थर है वह
हीरा है.
साधारणतया संसार में सभी इतने भा्ग्यशाली नहीं होते हैं.
जिंदगी बीत जाती है,सूरज नहीं निकलता है,सुबह नहीं होती है
और जीवन के सारे हीरे हम पतथर समझ कर फेंक चुके होते हैं.
जीवन एक बडी सम्पदा है,लेकिन आदमी सिवाय उसे फेंकने और
गंवाने के कुछ भी नहीं करता है.
हजारों वर्षों से हमें एक ही मंत्र दोहराने के लिये दिया
जाता रहा है---जीवन व्यर्थ है,जीवन दुखः है.
नहीं जीवन एक राज है,एक रहस्य,एक –एक पर्त खोलते रहिये
स्वर्ग की घाटियां फैली होंगी—स्वर्ग के उतंग-शिखर धवल-प्रकाश से आच्छादित
होगेम,निहारिये उन्हें.
साभार---संभोग से समाधि से.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर बहुत सुंदर !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 3 . 11 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
Bahut hi sunder prastuti !!
ReplyDeleteसमाधि तक तो ये शब्द ही काफी हैं ले जाने के लिए ...
ReplyDeleteबस परम आनंद को अनुभव किया जा सकता है ...
brihat arth liye huye prerak kahani
ReplyDelete