एक जादूगरी सी----तुम्हारी हंसी!!!
क्या तुम---पहली
बार हंस रहो हो?
हंसी क्या है
तुम्हारी---
अछूती सी---
दिल को छूती
सी---
या कि---पंक से
झांकता---एक कमल
गुलाबी पांखुरी
सी
कीचड को पोंछ कर
गुलाबी ओढे---
एक चादर सी
या कि----
चुटकुलों की---
पलकों पर अपने
एक किताब ओढे सी
तुम नहीं---
तुम्हारी आंखे हैं—
हंसती सी---
या कि---
डाका है डाला
छुपाए खजाना--
लबादे में
हंस रहे हो----
कारगुजारी पर
अपनी
तिजोरी के ताले
पर
तिजोरी के रखवाले
पर
या
कि----
कह रहे हो---
अपनी शरारतें
शरारती आंखों से अपनी
एक
तिनका छिपाए
डाढी में--- अपनी
बस----
हंस रहे हो
संपूर्णता से
आंखों से—
होंठों से—
हाथों से—
या कि---
लबादे की गरमी सी
तुम्हारी हंसी--
या कि---
तुम नहीं—
तुम्हारी हंसी
लहलहा रही है
हवा के झोंको में
एक जादूगरी सी.
मन
के-मनके
ख्यालों की उड़ान ... या सच का अनुभव ...
ReplyDeleteमन से दूर होते हुए भी धुरी मन के करीब ... बहुत ही लाजवाब ...
नासावा जी,
Deleteआभार,
पिछले दिनों मुझे एक मौका मिला ओशो की ऊर्जा को नजदीक से छूने का.
ओशो निसर्ग--एक छोटा सा स्वर्ग(मुझे लगा--वैसे तो सबके अपने-अपने स्वर्ग हैं). हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से करीब बीस किलोमीटर नी्चे कांगडा घाटी में--एक छोटा सा कम्म्यून जहां साल भर ओशो विचार-धारा बह रहती है--उसमें सिक्त होने का अनुभव-स्वम को सिक्त करने जैसा था---ओशो का यह चित्र मुझे कहीं मिल गया ओर मैं उनकी मासूमियत में डूब गई--डूब कर कुछ शब्द ले आई हूं.
सबको मेरा यथायोग्य कहें.
शुभकामनाओं के साथ.
मन के-मनके
बहुत सुन्दर
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