प्रिय सहब्लोगर,
करीब तीन वर्ष से अधिक समय से,मैं इस यात्रा में आपकी
सहयात्री रही हूं.
सोचा ना था---सफ़र यूं शुरू होगा और सुखद यादों की गुलमोहरी
छांव तले अपनी परिछाइयों के साथ जारी रहेगा.
ये परिछाइयां कभी आगे भी
हो गईं तो कभी पीछे---और कभी-कभी मैं ही स्वं की परिछाई सी हो गई.
विस्मृत कर रहे हैं आपके
उद्गार---जैसे राहों पर बिछ गईं हों अमलतासी झूमरें.
गिनती नहीं करूंगी अब तक
की प्रकाशित पोस्टों की----उकेरे गये शब्दों की---स्याही से लिखी गईं पंक्तियों
की---
क्योंकि,मालूम है तराजू
का पलडा भारी होगा आपके स्नेह व प्रोत्साहन का.
इस यात्रा के साथ-साथ एक
और यात्रा जारी है---स्वम की तलाश की.
एक श्रंखला में बद्ध,कुछ
पंक्तियों में,अपने अनुभव---जीवन के आइने
में खुद को देखने के,
बांधने की एक कोशिश कर
रही हूं---ओशो के साथ-साथ.
नाम दे रही हूं,
दग्ध मरु में---
मरुद्धानों के पदचिन्ह
मन के-मनके
God and Love
Create
an aura of love---when you pour love on rocks even rocks are not rocks.
Love
is such a miracle----such a magic. Osho
ठोकरों से
आहत
एक पत्थर—
राह
में---बे-घर सा
पत्थर
था,पत्थर रह गया
और----जब
प्यार की
बारिशों में---भीग
एक
पत्थर----
राह से---उठ
कर
बन गया शिव
मन के---शिवालय
में
बारिशें---होती तो हैं---
पर---
मन को करती नहीं—सिक्त
क्योंकि----
मन की देहरियों को
ऊंची-ऊंची करते
रहते हैं
ईंट-दर-ईंट चिनते रहते हैं—हम
डर है कहीं भीग ना
जांय-- हम
बे-शक----
आंसुओं से रोज---
भीगते रहते हैं---हम
और----
खारे-खारे से होते रहते हैं—हम
नदी के
तट----और
उनके
आमंत्रण
और----
सागरों की
अंतहीन सीमाएं
हमें----
अब कोई
फर्क डालती नहीं
क्योंकि----
जीभ पर---
तल्खी की
दरारें
गहरी होती
हैं---हर रोज
हमारी
तल्खियों से
खारा है
समंदर---
या कि---
मीठी है-- धार छोटी सी
फर्क----
अब नजर आता
नहीं
हमको----
समुंदर----
जरूरी भी है----
वरना----
क्षितिज से झांकता
सूरज
आहटें--- आने की- देगा कैसे!!
और----
नारंगियों में नहाता-- सूरज
कल आने की--- खबर
देगा कैसे!!!
लेकिन---
पहाडों
पर---
लाल-पीली-हरी
छतों से गुजरती
चुपचाप---
एक धार
नन्हीं सी
हर
दरवाजे पर पूछती
सदियों से
गुजरती है—
गागरें---भरनी
हैं???
आंचल
सभांलती सी
पाजेब---छमकाती
सी
चली जाती
है---
चुपचाप—
घरों के सामने से
ओ!
नीले-विस्तारहीन
खारे
अनंत---
प्यार---
तुम्हे भी करना होगा
क्योंकि---
तुम्हारी
छाती में
छुपा है---
विस्तार----
मेरे जीवन
का
ओ!
घर के दरवाजों से---गुजरती
मीठी सी—छोटी
सी
धार---
प्यार---
तुम्हें भी करना होगा
क्योंकि----
तुम—
तृप्ति हो---
मेरे प्यासे जीवन
की
और---
कमनाएं---
पग गईं—
प्रेम की
चाशनी में
प्रेम----
झुक गया
श्रद्धा की
ड्योढी पर
घंटियां---
बजती हैं कानों में
हृदय में गूंज है
ओंकार की—
सच ही कहा है
बसते हैं---
भगवान—
पत्थरों में भी----
...वाह शानदार मन के मनके
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