Friday 28 December 2012

आतुर हैं---भरने को ड्योढी पर मेरे




जाते हुए वक्त को(हर रोज)पीछे छोड कर
उन, असीमित--- घाटिओं के उस पार
चलती रहती हूं-------
कल के सिंदूरी-सूरज का, थामने हाथ
                   एक सूरज नहीं है---पास मेरे
                   झोली भर,सात रंगों की गाठें हैं
                   एक चांद नहीं है---पास मेरे
                   आंगन में,टंगी हैं,चांदनी की झालरें
आसमान तो,बे-इंतहा---है
मेरी गोद ही,छोटी है,बहुत
वादियां,जो हैं,सूनी अभी
भर जाएंगी,फूलों से(बसंत तो आने दें)
                   आंखे,खुलती हैं---तो
                   झांकता है,सूरज मेरा,खिडकी से मेरे
                   हर रात,चांदनी को ढूंढ ही लेती हूं
                   घर की बालकनी से---टिक
उम्र के तकिये पर रख,सिर
खूब नींद लेती हूं,सपनों भरी
कुछ-----सपने,अभी-भी---
दबे पडे,तकिये के नीचे
                  उन्हें,नहीं मालूम,पता
                  मेरे चेहरे की झुर्रियों का
                बस,रात सोने के बाद
               बंद-आंखों में,कुलबुलाते हैं,रोज
अब,क्या यह ठीक होगा
उन्हें, मैं आंख मीड
घोंट दूं---सांस लेने से पहले
वह सांस की डोरी मेरी नहीं(उस पार की है)
                   मुझे मालूम है,कि------
                   कुछ खाली गागरें भरती नहीं हैं
                   भरती रहती हूं,उन गागरों को
                   जो,आतुर हैं---भरने को,ड्योढी पर मेरे
                                         मन के-मनके



11 comments:

  1. सुन्दर भाव समेटे रचना..

    ReplyDelete
  2. मुझे मालूम है,कि------
    कुछ खाली गागरें भरती नहीं हैं
    संवेदनाओं के पार ह्रदय के भाव ,कुछ यूँ ही उभर आते हैं।बधाई सुन्दर रचना हेतु ,समय मिले तो विविधा पर पधारें स्वागत है सदा ।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

    ReplyDelete
  4. उन्हें,नहीं मालूम,पता
    मेरे चेहरे की झुर्रियों का
    बस,रात सोने के बाद
    बंद-आंखों में,कुलबुलाते हैं,रोज
    अब,क्या यह ठीक होगा
    उन्हें, मैं आंख मीड
    घोंट दूं---सांस लेने से पहले
    वह सांस की डोरी मेरी नहीं(उस पार की है)..

    निराशा की इस माहोल में आपका गीत आशा को प्रेरित करता है ... सकारात्मक भाव लिए बहुत ही लाजवाब प्रभावी रचना है ... जीवन ने तो चलना ही है ... उसके कार्य में बाधा पहुंचाना ठीक भी नहीं पर शायद इंसान को इसलिए ही अलग रक्खा गया है बाकी प्राणियों से ... उसको सोचने ओर भावनाओं में बहने की शक्ति दी है ... ओर वो उससे प्रबावित हुए बिना रह नहीं पाता ...
    सार्थक रचना है ...

    ReplyDelete
  5. मुझे लगता है मेरी कई टिप्पणियाँ आपके स्पैम में जा रही हैं ... उनको स्पैम से निकालें ...

    ReplyDelete
  6. उम्र के तकिये पर रख,सिर
    खूब नींद लेती हूं,सपनों भरी
    कुछ-----सपने,अभी-भी---
    दबे पडे,तकिये के नीचे

    सुंदर रचना।।।

    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।

    ReplyDelete
  7. ‘कुछ खाली गागरें भरती नहीं हैं।‘

    बहुत बढ़िया।

    नव-वर्ष की शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  8. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.

    ReplyDelete