वक्त का तकाज़ा है----
रिश्तों के बहीखाते
जो,’कल’ की दीमकों ने
कुतर लिये हैं----और
हिसाबों के पन्ने,रह गये
हैं
आधे-अधूरे------
उन पर,अब कोई हस्ताक्षर
बेमानी हैं------
वक्त का तकाज़ा है----
उन रिश्तों के बहीखातों को
’कल’ की दीमकों को ही---
कुछ और कुतरने दें—
ताकि, कल की वित्षणना
तृप्त हो---दहन हो जाय
अपनी ही दाहों में---
वक्त का तकाज़ा है---
उन रिश्तों के बहीखातों को
’कल’(भविष्य)
की स्याही से
पुनः लिख-----
हिसाबों के पन्नों को---
लिखें,पूरा-पूरा----
वक्त का तकाज़ा है---
वक्त का तकाजा है, रिश्तों का हो आकलन |
ReplyDeleteबही खाते में लिखे, कहता है ये आज मन ||
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
nice poem
ReplyDeletesundar abhivyakti..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
समय अभी है, समय कभी था..
ReplyDeleteकालचक्र चलते रहना है
ReplyDeleteउसके साथ ढलते रहना है
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .
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