कल-आज-कल
की धाराओं में
हर-पल
की धारा
एक
त्रिवेणी है
नित-हर-पल
इसमें एक डुबकी
जीवन के महाकुंभ
में
जीवन-तरणी है----
शंकाओ ’और’ बोध अपराधों के
मलिन ना
कर दें,इसके तट को
मधु-घूंट समझ,इस जीवन को
मिट
लें,तृप्त-अमर होकर हम
कहां से आएं हम,और
कहां जाना
है---
नहीं
टटोलना इन प्रश्नों को
रहने दें,नित्य-निरुत्तर,उनके ही अर्थों में
हम तो,बिसरती गाथाओं में
धीरे-धीरे ओझल हो जाएंगे
स्मृति-चिन्हों में अंकित होकर
ज्यों नित्य-निरंतर,जाने वाले
पल
कल-आज-कल-------
बहुत उम्दा रचना । बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआपकी यह कविता मन को आंदोलित कर गई । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteआने वाला कल जाने वाले को याद रखता है।
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