यह कोई किस्सा नहीं है,ना ही,किसी पर व्यंग,जीवन का एक कटु सत्य जो हमारे चारों ओर.केक्टस की तरह उग आएं हैं,जो थोडे बहुत फूल थे राहों पर,वे भी इन केक्टस के कांटों से बिंध गये हैं.
मेरे ही परिवार की आदरणीयां महिला के तीनों बेटे ,सौभाग्यवश या अपने प्रारब्ध के प्रितिफल के कारण,अमेरिकीवासी हैं,और डालर की छत्र-छाया में, जीवन-यापन कर रहें हैं.
कुछ वर्ष पूर्वे,वे बिचारे रुपये की छत्र-छाया में ही जी रहे थे,और,लक्षमी के उपासक थे.
आज,वही लक्ष्मी माई हेय हो गईं,डालर के सामने.
उनके बडे बेटे के,डालर की दुनिया में बीस मकान हैं,और,वे ईश्वर को धन्यवाद देते नहीं थकते ,कि, वे ही इस अनुकम्पा के सुयोग्य पात्र हैं.
इसी अनुकम्पा के रिण को चुकाने के लिये,हनुमानजी के मंदिर में १००० रुपये की पूडी-सब्जी(मुश्किल से ३० सेन्ट) १५-२० लोगों के भरे पेटों में डालने की अनुकम्पा कर रहे थे,शायद यह सोच कर कि भगवान के रिण से वे मुक्त हो जाएंगे.
भगवान के सामने भी,डालर की चार-सो बीसी से बाज नहीं आये.
अब,हनुमान जी की विशेष अनुकम्पा का एक और उदाहरण—
जब वे हनुमान जी को माला चढा रहे थे,तभी,किसी ने पीछे से धक्का दे दिया,और,माला सीधे हनुमानजी के चरणों में गिर गई.
अब कोई भी संदेह नही रहा,उनके ऊपर,हनुमान जी की ,विशेष अनुकम्पा है.
वाह री,आस्था,भगवान को भी चूना लगाने से बाज नहीं आती है.
आस्था भी डॉलर में बिकती है...एक मंदिर में डॉलर देने वाले व्यक्ति के लिए पुजारी अलग से विशेष पूजा कराते हैं...सारे तीर्थों पर लक्ष्मी के आह्वान पर विशेष कृपा बरसती है...
ReplyDeleteविचारणीय ... विदेशों में जा कर पैसा ही पैसा दिखता है
ReplyDeleteसही चित्रण ......
ReplyDeleteसबको आशीर्वाद मिलता रहे..
ReplyDeleteसिक्कों की चमक सभी कुछ भुला देती है ... आस्था की तो बात ही क्या है ...
ReplyDeleteबढिया
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