क्योंकर,खिलते हैं—गुल-सुर्ख
शिराओं में लिये,धधकती लहू की बूंद, गर्म
फूलों के संग,क्योंकर,उग आते हैं,शूल कटीले
जब,वक्त बहा झंझावत सा----
तो, चटक-चटक,क्यों जाती हैं,शिराएं,लहू-भरी—
गर,शूल दिए-गुलों की डाली पर—
क्योंकर,भंवरों की गुन-गुन दी
तो,रंगों को बिखराया—बगियों में
क्योंकर,महक भरी—घर-आंगन में
तो,तू भी घर-आंगन छोड---
बैठ गया,चौराहों पर----क्यों
क्योंकर,गोदें,सूनी हैं,किलकारी से—
तो, कहीं भटकन है,बूढी आंखों में, अनंत
क्योंकर,रीता सा बचपन,सडकों पर बिखर रहा
तो, कहीं यौवन,भटक रहा,ले मुट्ठी खाली,सडकों पर
क्योंकर,उम्र,झुर्रियों वाली,घर की ड्ढ्योढी पर बैठी
बांट जोहती सहारे,चार कंधों के---
क्योंकर,मुक्ति हुई,मृग-कस्तूरी सी—
जीवन,भटक रहा पीछे,झूठी खुशबू के---
क्योंकर---- मन के-मनके
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteन जाने कितने रंगों से भर दी ईश्वर ने फुलवारी...
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