एक निमंत्रण,बाट जोहता,ढ्योडी पर
पढ लेना उसको भी---
फूल गईं हैं,बोगनविलिया
महक उठीं, चंपे की कलियां
गुलमोहर की शाखाओं से
फूट पडे हैं, सूरज से फूल
कमरे की खिडकी से लटकी
मनीप्लांट की बेलें दो—
निकल पडीं, सूरज का थामें, आंचल
कमरे की खिडकी से दूर---
खोल दिये हैं, पुरवय्या ने, खिडकी के पट
दरवाजे भी, कुछ-कुछ, उढक गये हैं—
लौंट आईं हैं, पातें, विहगों की---
चलीं गईें थी, जो, पतझड से दूर—
छप गये, पत्र-निंमंत्रण, मनुहारों के
आतुर हैं,आंचल में भरने को( चले गये जो अपनों से दूर)
आंगन की बगियों में भी—
बिछ गये, मनुहारी, गुलमोहर के फूल
देख, पत्र-निंमंत्रण, मनुहारों के
एक बार,उन्हें भी भी पढ लेना
दरवाजे की ढ्योडी पर,नितांत कोई
बाट, जो रहा दूर तलक-----
एक मनुहार और, मान लेना मेरी भी
उनको भी ले आना साथ—
जो, छोड चले गये------
मेरे इस आंगन से दूर----
एक निमंत्रण, बाट जोहता ढ्योडी पर----
मन के--मनके
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut achchi prastuti bhaavnaon ki gahan anubhooti ke saath.
ReplyDeleteगुलमोहर की शाखाओं से
ReplyDeleteफूट पडे हैं, सूरज से फूल...
बहुत सुंदर
आंगन की बगियों में भी—
ReplyDeleteबिछ गये, मनुहारी, गुलमोहर के फूल
देख, पत्र-निंमंत्रण, मनुहारों के
एक बार,उन्हें भी भी पढ लेना
दरवाजे की ढ्योडी पर,नितांत कोई
बाट, जो रहा दूर तलक
वाह...वाह...क्या कहूँ...अभिभूत हूँ
नीरज
देख, पत्र-निंमंत्रण, मनुहारों के
ReplyDeleteएक बार,उन्हें भी भी पढ लेना
दरवाजे की ढ्योडी पर,नितांत कोई
बाट, जो रहा दूर तलक-----
intzaar ka apna alg hi maza hain
मन की कोमल प्रस्तुति...
ReplyDeleteलम्बे अरसे बाद इन गलियों में आया हूँ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteमगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
आज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
एक मनुहार और, मान लेना मेरी भी
ReplyDeleteउनको भी ले आना साथ—
जो, छोड चले गये------
मेरे इस आंगन से दूर----
एक निमंत्रण, बाट जोहता ढ्योडी पर----
वाह!
अनुपम भाव संयोजन.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
देख, पत्र-निंमंत्रण, मनुहारों के
ReplyDeleteएक बार,उन्हें भी भी पढ लेना
दरवाजे की ढ्योडी पर,नितांत कोई
बाट, जो रहा दूर तलक-----
bahut hi sundar rachana lagi sadar badhai.