कितने रूप ,धरे हैं,तूने
बन बहुरूपिया,छलिया सा तू
कहीं,फूल सा महका है
तो
कभी,कांटॊं की चुभन,लिये है,तू
तो
कभी,कांटों की चुभन,लिये है,तू
तो
कभी,गुन-गुन-गुन सी,भंवरों की
तो
कहीं, कलरव बन,विहगों का तू
तो
कहीं,मोर सा,नाचा बागों में,तू
तो
कभी,हंस सा,धवल हुआ है,तू
तो
कहीं,शिखरों पर,जमीं बर्फ सा
आच्छादित हो गया है,तू
तो
कभी,चमकते तारों में भी
नज़र नहीं,आता है,तू
तो
कभी,विस्तार-व्यौम सा,हुआ है,तू
तो
बन,आकाश-गंगा,मन-मुग्ध हुआ,तू
तो
कभी,करुणा बन,आंखों में,तैरा तू
तो
कभी,प्रेम-गीत बन,अधरों पर,थिरका,तू
तो
कभी,बन भगवान,तिष्ट हुआ शिवालयों में
तो
कही,बन भिखारी,चिथडों में,भटका,तू
छलिया सा,बहुरूपिया है,तू
बन बहुरूपिया,छलिया सा तू
कहीं,फूल सा महका है
तो
कभी,कांटॊं की चुभन,लिये है,तू
तो
कभी,कांटों की चुभन,लिये है,तू
तो
कभी,गुन-गुन-गुन सी,भंवरों की
तो
कहीं, कलरव बन,विहगों का तू
तो
कहीं,मोर सा,नाचा बागों में,तू
तो
कभी,हंस सा,धवल हुआ है,तू
तो
कहीं,शिखरों पर,जमीं बर्फ सा
आच्छादित हो गया है,तू
तो
कभी,चमकते तारों में भी
नज़र नहीं,आता है,तू
तो
कभी,विस्तार-व्यौम सा,हुआ है,तू
तो
बन,आकाश-गंगा,मन-मुग्ध हुआ,तू
तो
कभी,करुणा बन,आंखों में,तैरा तू
तो
कभी,प्रेम-गीत बन,अधरों पर,थिरका,तू
तो
कभी,बन भगवान,तिष्ट हुआ शिवालयों में
तो
कही,बन भिखारी,चिथडों में,भटका,तू
छलिया सा,बहुरूपिया है,तू
एक ईश्वर के न जाने कितने रुप।
ReplyDeleteईश्वर की.. अराधना का ये रूप मन को भा गया ...
ReplyDeleteउसके रूप अनेक... बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर...
ishwar ki bhakti ka sundar roop...aabhar
ReplyDeleteआह...यही जो स्थायी भाव हो जाय ह्रदय का ...
ReplyDeleteजब वह ह्रदय में बस जाए तो चरों और उसका ही प्रतिरूप दीखता है....
पावन अभिव्यक्ति...