कुछ दिन हुए
देश रो रहा था
नेता सुबुक रहे थे
चारों तरफ,आहों का हाहाकार था
अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर
शहीदों के नाम थे
नामों के नीचे----------
दिये गये,दौलतों के पैगाम थे
शहीदी दिवस पर-----------
झंडे गाढने वालों को
एक और,पुरज़ोर----------
मौका मिल गया था
ताकि,झंडे गाढते समय
पुष्पांजलि के साथ
उनके,बदरंग चेहरे भी
छप सकें,अखबारों के मुख्पृष्ठ पर
गाहे-बगाहे,दिखा सकें-------
अपने बाज़ारों की दुकानों पर
कितने,दांतेवाडे अबतलक,घट चुके हैं
और भी घटते रहेंगे---------
सफ़ेद-धवल,चांदनी में,लिपटे
स्याह-नेता,संसद में,रोते रहेंगे
पर,क्या-कोई-कभी------
दांतेवाडा,घटा उनके आंगनों भी
क्या-कोई-कभी---------
लेने पहुंचा है,लेने उनके आंसुओं का हिसाब
कितनों ने,अपनों की चिताओं पर
चढाएं हैं, फूल,आंसुओं के
कितनों की आंखों से बह्कर
सूखें हैं,खारें समुंदर---
इन दर्द के आंसुओं की
इतनी बडी खबर ना बनाओ,यारों
रोने वालों को छोड दो,अकेले
दौलत,उन आंसुओं की ही,रह जाए
दामन में,उनके--------
(मन के—मनके)
हृदय रोता है।
ReplyDeleteक्या करें ………आम आदमी के दर्द को बखूबीउकेरा है।
ReplyDeleteसार्थक,मार्मिक ,प्रभावशाली...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
Prabhavi rachana
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