Saturday, 17 September 2011

खुशबू बिना,फूल

खुशबू बिना,फूल
खुशबू बिना,फूल—
       रंग चटक---
ये हैं,कागज़ के फूल—
        एक दिन----
झोंका हवा का-----
        यूं ही,गुज़र गया---
और,रीता सा रह गया---
         सोचने लगा---
फूल किसने,बनाया तुम्हें---
          खुशबू बिना----
अर्थ क्या है,इन रंगों का---
           जैसे कि---
कुछ देकर ,’कोई’ कुछ भूल गया—
            उपेक्षित से----
घर के बगीचे के,पेड पर टिके---
             यूं,कि,जैसे---
चाह के बगैर,वीराने में,कोई छोड गया---
              खुशबू बिना---
भंवरों की,गुन-गुन,रह गई,कहां---
              आकर,द्वार तलक---
मौसम में,मेहमान भी आकर,चले गए---
               महक,होती अगर---
रंगों की भी,पहचान करता कोई---
                राह चलते,हमसफ़र---
जीवन,पांखुरी में भर,ठहर जाते,दो घडी---
                 बिखरती नही----
जब तलक,जिंदगी की महक----
                 याद करता है,भला कौन----
अपनों को भी,अपने चले जाने के बाद-----
                                       मन के--मनके                                         


10 comments:

  1. बहुत बढि़या ।

    ReplyDelete
  2. असली खुशबू तो संबन्धों में ही है।

    ReplyDelete



  3. आदरणीया डॉ.उर्मिला सिंह जी
    सादर प्रणाम !

    आपके ब्लॉग पर भावनाओं का मेला-सा है … कई आलेख और कविताएं देख कर मन द्रवित भी हुआ … हर्षित भी !

    प्रस्तुत कविता में कागज़ के फूल की अंतर्व्यथा के बहाने आपने बहुत कुछ कहा है …

    आता रहूंगा … आपके भाव-संसार की सैर करने …

    ♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  4. सुंदर भाव .... दिल से निकली रचना !

    ReplyDelete
  5. खूबसूरत अभिव्यक्ति....
    बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग में आकार....
    सादर आभार

    ReplyDelete
  6. गहन भावों की भावुक अभिव्यक्ति....वाह....

    बहुत ही सुन्दर....

    ReplyDelete
  7. ये सच है जाने के बाद कोई लंबे समय तक यद् नहीं रखता ... पर शायद इसी को जीवन कहते हैं ...

    ReplyDelete
  8. कागज़ के फूलो का दर्द समझ में आ रहा है ......आभार

    ReplyDelete