Monday, 12 September 2016

एक घरोंदा प्यार का-




एक घरोंदा प्यार का—
    मैंने भी यूं नही बनाया
    खिलोने तो और भी—
    बहुत थे--
    खेलने के लिये—
   इसको खिलोना समझ—
खरीदा भी नहीं था—
छीना भी नहीं था,किसी और से
यह एक बहाना भी नहीं था—
खुद से-किसी और से भी नहीं
मेरे वज़ूद से कतरा-कतरा होते रहे
दिन-रात मेरे---
हर-एक सपने मेरे—
सपनों को ईंट की तरह-
चिनती रही—
इंतजारी गारे में घोल कर
बे-खबर थी---
सपने तो सपने ही होते हैं
कुछ और होते नहीं
कल किसी को कहते सुना था-कि
सुबह की होन में-एक सपना
बन चांद का टुकडा—
आ गिरा—
आंगन के फर्श पर-
और—गोद में यूं बिखर गया,कि
चांदनी बिखर गयी हो,जैसे-
आंगन के फर्श पर—
मैंने भी सोचा—चाहा भी
सपनों की ईंटों को चिन-चिन
इंतजारी गारे में घोल कर
एक घरोंदा मैं भी बना लूं
फिर,उस सपनों को-
सुबह की होन में
खुली आंखो से मैं भी देख लूं
और—
एक घरोंदा प्यार का
टूटे नहीं—
बहानों के झूठ में,और
प्यार का घरोंदा—
जमुनाई आसुओं के किनारे
ताजमहल सा—
संगमर्मरी हो जाय-
हर आस बिखरती रहे
मैं,जमुनाई आसुंओं के किनारे बैठ कर
इंतजार करती रही—
ताज के खडे होने का—
और—
ताज के गढने के लिये--
एक शाहेजहां कहां था?
मुमताज तो दफन थी
कब्र में—
झरोखों से झांकता
शाहेजहां पहले से ही लिपटा हुआ था,
ना-उमीदों के कफन में--
एक घरोंदा प्यार का-
मैंने भी यूं नहीं बनाया था.




6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 14 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-09-2016) को "हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2465) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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