एक घर है—जिसे घर की तरह
हर-रोज बु्हारती रहती हूं,मैं
पर मेरे ही पैरों में लगी धूल
वापस लौट आती है,्फिर-फिर
समझदार बहुत हूं मै,कि
घर तो घर ही होता है
पर घर में क्या होता है
कौन होता है—
समझदारी में भी नासमझी सी हो जाती है
औरो से पूछा—हालांकि सालो की समझदारी है,पास
किसी ने कहा—घर-घर होता है
किसी ने कहा,घर दो कमरों का होता है
किसी ने कहा,घर तीन कमरों का भी होता है
किसी ने कहा, झोपडा भी तो घर होता है
किसी ने यह भी कहा
राजा का महल भी तो राजा का घर होता है
पर किसी ने भी यह नहीं कहा,कि
घर एक रहनुमा की टंगी कमीज भी होता है
जिसका टूटा बटन,बुहारते समय उठा कर
कमीज में दुबारा टांगना भी होता है
बाकी कमीज की महक को
बाहों में समेटे हुए--.
घर क्या होता है---?
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 14 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteThank u,wld be sure.
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