यह जिंदगी—वक्त की रेत पर
खींची गयी लकीर है.
यह जिंदगी—एक झोंका है हवा
का,बुलबुला पानी का—
इसके गुजरने से पहले—इसमें
झलकता इंद्रधनुष देखना ना भूलें
हर-पल एक उत्सव है—मनाना ना
भूलिये—
यह सोचकर कि अब है—तब हो ना
हो?
यह जान कर कि जो हमारे साथ
हैं वे कब निकल जांय अनंत की यात्रा पर.
यह जान कर कि जो हमारे साथ
हैं कहीं वे ही ना पीछे छूट जांय और हम निकल जांय अनंत की यात्रा पर.
जाने कहां चले जाते हैं
दुनिया से—जाने वाले??
हर रोज ऐसी खबरें हमें आगाह
करती हैं और हम जागते-जागते रह जाते है.
इन खबरों में छुपे जीवन के
अर्थों को अखबार में मोड कर ना छोडिये,
बे-शक एक नजर डालने के बाद
अखबार रद्दी ही हो जाता है,लेकिन हर कतरनों में रवायतें हैं जिंदगी की.
हर एक शब्द में छुपे हैं,कुछ
बोल किसी गीत के—उन्हें जोड कर देखिये—गुनगुना ना भूलिये.
हर कोई बहुत कुछ पाता है---और
बहुत कुछ खोता भी है.
खोना जरूरी है—अन्यथा जो है—वह
बे-कीमती हो जाता है—और जो है उसे संभालना का सलीका भी आ जाता है.
जो है—संभाल कर रखिये,सबसे
बडी दौलत है—अपनों की शक्ल में,रिश्तों की महक में.
उन्हें सहेजना भी होता है—और
सराहना भी.
जो हैं—कोशिश करिये कहीं
छूट ना जायं—नये बनाने में भी गुरेज़ ना करिये,जरूरी नहीं उनकी उम्र लंबी हो—जितनी भी
हो क्या कम है.दे दीजियी जो भी दे सकें,ले लीजिये जो भी ले सकें,क्यों कि यह जिंदगी
बुलबुला है,पानी का,पानी पर खींची हुई लकीर—हिसाब किसको देना है—किससे लेना है??
एक खबर—६०-७० के दशक की चित्रकारा
साधना जी नहीं रहीं.
और जहन से उतरने लगीं वे—अपनी
खूबसूरती में,खास अंदाज में,और एक बहुत ही खास अंदाज जो उनकी केश-सज्जा का था—जिसे
उस समय युवा बच्चियों ने अपनाया—एक खूबसूरत चलन जो करीब दो दशक तक चला होगा—और यादगार
चलचित्रों का खूबसूरत सिलसिला—मेरे मेहबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम—सालों गुनगुनाया
गया—
मै भी गुनगुनाया करती थी—उनकी
परछाई में खुद को खडा कर के.
और—यही सिलसिला है-हर-एक जिंदगी
का.
खूबसूरती से जीना और खूबसूरती
से चले जाना.
हम सब पात्र हैं—किसी ना किसी
चलचित्र के--.
ओशो—जीवन उत्सव है.
२०१५ अलविदा कह रहा है—मुस्कुरा कर उसे अलविदा कहिये,धन्यवाद
देना ना भूलिये—बहुत कुछ खूबसूरत दे कर जा रहा है—और स्वागत की तैयारियां भी करनी है—२०१६
की—करिये—कुछ मीठा खाकर—कुछ मीठा खिला कर.
ओशो—जीवन हर-पल एक उत्सव
है.
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