Saturday, 5 December 2015

आइये हमारे प्यारे राम



                 आइये हमारे प्यारे राम
आज ६ दिसंबर है---बर्सी उस म्रुत्य प्राहः मुद्दे की जो आज से २३ वर्ष पूर्वे पैदा किया गया था.
तब से आज तक हम देख रहे है कि इस तारीख से पहले साधारण जन-मानस के मन में एक सोए हुए भूत को जगा कर उसे फिर से भूत बनाया जाता है--,शायद कितने आने वाले बरसों तक यह भूत-क्रिया-प्रिक्रिया बरकरार रहेगी—राम ही जाने?
बिचारे राम हमारे प्यारे से राम—कितने बिचारे हो गये हैं—कोई उनसे पूछे तो सही?
अब प्रश्न उठ सकता है—कहां पूछे किससे पूछे—सो घट-घट में बसने वाले राम हमारे प्यारे राम—कभी अपने घट में झाके तो सही—उनसे पूछें तो सही कि क्या आप मंदिर में बिराजना चाहते हैं कि हमारे घट-घट में ही विश्राम करेंगे?
मगर हम नहीं पूछना चाहते.मालूम है—राम का उत्तर क्या होगा.
ये वादे,ये दावे—ये मंचों पर चढ ऊंची आवाजों के दायरे, दावानल हुए जा रहे हैं—ये आग जंगल की आग बन आम मानस-जन का सूकून, जो कुछ बाकी रह गया है उसे भी लील रही है—वैसे भी कितने मुद्दे हैं जो जीने नहीं दे रहे हैं—जो भूखे की रोटी है,प्यासे का जल है,बेसहारों की छतें है—नंगी होती इज्जतें हैं—बच्चों की सूनी आंखें हैं—ममता के चिथडे आंचल हैं—झीर-झीर होती मर्यादाएं हैं—और नित-नित द्रोपदी की लुटती-खुलती साडी है—आज के बेलागाम दुर्योधन के हाथों में.
कितनी बार क्रुष्ण इस धरा पर अवतार बन कर पधारें—वे भी बिचारे अब सोचने लगे होंगे कि सब व्यर्थ है—यहां दुर्योधन की पौध ही उगती है—कितने कुकुरमुत्तों को उखाडोगे.
बस, अब तो—एक ही किरण हैं—कि बिचारे राम को पुकारें, जो हमने हमारे घट-घट में बसा रखें हैं उनको जगायें कि अब तो आंखे खोलें ये कृपा निधान—धनुष को कांधे पर टिकाएं कि कृपा करें उनसे जाकर हमारी गुहार लगाइये—इन बिचारे—बिचारों को क्षमा कर दीजिये—इन्हें अपनी रोटी की जुगाड करने दीजिये,इन्हें अपने बच्चों को पालने दीजिये—इनके पडोस को आबाद रहने दीजिये---अब इन्हें और एक हिंदुस्तान और एक पाकिस्तान हजम नहीं हो पायेगा क्योंकि इनका हाजमा कमजोर हो गया है—मिलावटो के चूर्ण से—और मंहगाई के जुलाब से.
ये बिचारे खुश हैं अपने घट-घट के राम से और मैं भी खुश हूं इनके घट-घट में पडी छोटी सी सय्या पर सिर टिकाए हुए.
आइये हमारे प्यारे राम जी.

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