Tuesday 20 October 2015

जब बुद्ध—बुद्ध हुए


जब बुद्ध—बुद्ध हुए

तब एक व्यक्ति ने उनसे पूछा—कृपा करके बताएं,बुद्धत्व से आपको क्या मिला?

बुद्ध ने उत्तर दिया—कुछ भी नहीं.हां,बहुत कुछ खोया अवश्य क्योंकि, जो पाया वह वहां ही था.

मैं अग्यान के अंधेरे में भटक रहा था.इसके विषय में मुझे कुछ भी पता नहीं था. हां ,मैंने अपना बहुत कुछ खो दिया—अपना अहम,अपना स्वम,अपना अग्यान.

अपने सारे स्वप्न,अपनी समस्त इच्छाएं,सभी आशाएं—सब कुछ.

लेकिन,मैं यह भी नहीं कह सकता कि मैंने पाया क्या?

क्योंकि.जो पाया वह मेरे पास था  ही.

और,मैंने वही पाया जो था.

सूत्र: जो पाया नहीं जा सकता, उसको पाया नहीं जाता.केवल जाना जा सकता है.

“Unattainable,can not be attained,only can be known.”

(साभार—मौन की पुकार,ओशो.)

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-10-2015) को "आगमन और प्रस्थान की परम्परा" (चर्चा अंक-2136) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जो पाया नहीं जा सकता, उसको पाया नहीं जाता.केवल जाना जा सकता है.

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  3. बहुत सुंदर विचार. विजयादशमी की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट : बीते न रैन

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