Friday, 17 July 2015

जहां इंद्रधनुष खो जाता है,वहां संसार खो जाता है


   


अर्चना जी ने मेरी पोस्ट--पपीहा पर अपनी टिप्पणी दी और कहा कि पचपन की यादों को कहूं.
सो--कहने का प्रयास कर रही हू.
कभी-कभी लगता नहीं है कि बहुत कुछ समांतर चल रहा होता है--सभी के जीवन में?
स्कूल जाते हुए हम शायद ही अकेले होते थे--हमारे सहपाठियों के अलावा--रास्ते की झाडियां,जो उलझ जाया करती थीं हमारे कपडों से.जानते थे--फिर भी उलझते थे--जैसे कि अपने दोस्तों से---झगडा में उलझना ही है.
हर मौसम में --राहों के साथी बदल जाया करते थे.
बारिश में जामुन का पेड--इतनी जामुने टपका देता था कि--बीनते ही रहते थे--बीनते ही रहते थे---और--करीब-करीब रोज ही एक-दो पीरिएड कक्षा के बाहर खडे रहना होता था--सिर झुकाए.
जाडों में अमरूद और बेर चैन नहीं लेने देते थे--जिस दीवाल पर चढ नहीं पाते थे--उसी पर चढ जाते थे--चोरी करना पाप है--मोरल-साइंस के आठवें पीरिएड में पढकर आते थे--और करते ही थे-चोरी.
गर्मियों की सुबह और वापसी की दोपहर--इमली के पेड के नीचे ही कटती थी--वो लंबे-लंबे कटारे--गालों में भरे--बस्तों में किताब-कोपियों से चिपके---बात वही कि वही--ढाक के दो पात.
कितनी भी मोरल साइंस पढो--हर रोज फेल ही होना है--जिंदगी के इंतहान में---मगर इस इंतहान में जो फेल हुआ--उसने ही जिंदगी के इंद्रधनुष को छुआ जरूर होगा.

वो इमली का बूटा-टूटा सा
कुछ खट्टा-कुछ मीठा सा
बीच स्कूल की डगर रोकता
जैसे,आवारा-नकारा सा
एक मित्र-पथ का भूला सा.
जहां इंद्रधनुष खो जाता है,वही संसार भी खो जाता है.ओशो

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और एक पोस्ट की समीक्षा" {चर्चा अंक - 2041} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. कभी यादें ही शेष रह जाती हैं.

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  3. वो इमली का बूटा-टूटा सा
    कुछ खट्टा-कुछ मीठा सा
    बीच स्कूल की डगर रोकता
    जैसे,आवारा-नकारा सा
    एक मित्र-पथ का भूला सा.
    जहां इंद्रधनुष खो जाता है,वही संसार भी खो जाता है...
    ..बहुत सुन्दर

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  4. यादें और वो भी बचपन की ... चिपक जाती हैं उम्र से ...

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  5. Very nice post ...
    Welcome to my blog on my new post.

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