जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये
और मैं आज---रोते-रोते सो गयी
जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये
सीने पर गोलियां कर लीं दफन
और बेटी अलका को दे कल के स्वप्न
पत्नी-पिता और अपनों को कर विहल
जब मुनीन्द्र आंखे मूंद कर सो गये
हर बरस लगेंगे मेले
चिताओं पर शहीदों के
हर फूल जो,जब भी खिलेगा
चाहत लिये बस एक ही
मंदिरों की ड्योढी पर चढने से पहले
दुल्हन की डोली पर सजने से पहले
हजारों ’मुनीन्द्र’ की चिताओं पर
फेंक देना---राख होने के लिये
हमारी खुशबुएं---
हमारी रंगीनियां—
सब---बे-वजह हैं
गर,शहीदों के नाम ना हों.
रात ९ बजे----जी न्यूज पर प्रसारित शहीद मुनीन्द्र नाथ राय
की अंत्येष्टि की प्रसारित झलकियां जो
आंखों को नम कर
गयीं और हमें गर्व से भी भर गयीं एक भरोसे के साथ---जब उनकी ११ वर्षीय बेटी अलका
ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से विदायी दी---वीर-गीत के उद्घोष के साथ---कि हमारा आज और
कल भी सुरक्षित है----देश के शत्रु किसी भी रूप में हों----मिटते रहेंगे और हम आगे बढते रहेंगे अमन की राह पर.
मेरा भी शतः शतः नमन,शहीद मुनीन्द्र नाथ राय को.
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-01-2015) को "नये बहाने लिखने के..." (चर्चा-1875) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dhanyaadav
ReplyDeleteसच में आँखें नाम कर गया वो दृश्य जिसमें उनकी बेटी अंतिम बिदाई देती है उन्हें ...
ReplyDeleteवन्दे मातरम् शायद यही है ...
we should have our eyes moist---at least.
ReplyDeleteनम आँखें और गौरव भारतीय सेना की नियति बनता जा रहा है...नापाक मंसूबों की भेंट एक और जांबाज़ चढ़ गया...श्रद्धांजलि...
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