वहां दो दार्शनिक रहा करते थे----उनमें से एक आस्तिक दूसरा
नास्तिक.
उन दोनों के साथ-साथ रहते हुए पूरा नगर परेशान था क्योंकि
वे दोनों नगर वासियों को अपने-अपने तर्कों से कायल करते रहते थे,और एक दिन एक
दार्शनिक से नगरवासी की बात हो जाती थी तो वह आस्तिक बन जाता था और दूसरे दिन जब
दूसरे दार्शनिक से बात होती तो वह नास्तिक बन जाता था.
और पूरा नगर बहुत भ्रम व उलझन में पडा हुआ था.
अतः नगरवासियों ने यह निर्णय लिया कि इन दोनों को आपस में
वाद-विवाद और तर्क-वितर्क करने दो,जो भी जीतेगा हम उसी के साथ हो लेंगे क्योंकि जो
विजयी होता है वही सत्य होता है.
इसलिये उस नगर के लोग एक जगह एकत्रित हुए और उन्होंने
कहा---
आज की रात पूर्ण चन्द्रमा की रात है,हम सभी पूरी रात जागते
रहेंगे-----जो भी विजयी होगा हम लोग उसी का अनुसरण करेंगे.
इसलिये वैसा ही हुआ.
उस पूर्णमासी की रात दोनों दार्शनिक वाद-विवाद करते रहे.
सुबह नगरवासी और भी उलझन में पड गये.
आस्तिक---नास्तिक बन गया था.
नास्तिक---आस्तिक बन गया था.
वास्तव में यह दो अलग चीजें नहीं हैं.
प्रत्येक नास्तिक में आस्तिक छुपा हुआ होता है.
प्रत्येक आस्तिक में नास्तिक छुपा हुआ होता है.
साभार---ओशो के प्रवचन से,जो संकलित किया गया---
मां सागर प्रिया के द्वारा.
(पुस्तक-- सहज जीवन, खंड---खतरे में जियो.)
बहुत सुन्दर . ओशो के विचार गहरे अर्थ रखते हैं.
ReplyDeleteनई पोस्ट : यादें
Thanks for selecting the post.
ReplyDeleteWith regards
Thanks.
ReplyDeleteBeautiful---yaade hopes of Tomorrow.
बेहतरीन सोच .....अर्थ लिए
ReplyDeletethanks
Deleteरोचक और गहन अर्थ लिए हा ये कथा ... तर्क किस हद तक इंसान को बदल सकता है इस की पराकाष्ठ है ये कथा ... आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... सर्दियों में अपना ध्यान रखें ...
ReplyDeleteThanks fora ur ( Im sure all of u) concern for my wellbeing.
ReplyDeleteIm quite well and having nice time with my grandchildren---Abhijaya and Jaydev from Sydney.
when your next visit to Agra,obviously u all.