Tuesday, 13 May 2014



ओशो---स्वंम एक अभिव्यक्ति हैं---जो उनके विचार-उवाच के माध्यम से,भागीरथी सी फूटती है और मनस की धरती तृप्त हो, मुक्ति की महक से सरोबार हो,क्लांत-भ्रांत-अशांत मनस,गंगोत्री से होकर गंगा के तटों पर,सांध्य-आरती में प्रकाशित हो,जीवन की लहरों पर नृत्यंत हो,आस्तित्व के महासागर से एकतव्य होता है.
आदमी----?
१.लेकिन ध्यान रहे,आदमी सब बीमारियों से मुक्त होकर भी आदमी होने के बीमारी से मुक्त नहीं हो पाता.
२.वह जो आदमी होने के बीमारी है,वह असंभव की चाह है.
३.वह जो आदमी होने की बीमारी है---वह जो मिल जाय उसे व्यर्थ कर देना है और जो नहीं मिला उसकी सार्थकता में लग जाना है.
४.आदमी होने की बीमारी का इलाज---ध्यान है.
नीत्शे ने कहीं कहा है---
५.आदमी एक सेतु है---स्ट्रेच्ड बिटवीन टू इम्पोसिबिलिटी.
दो असंभावनाओं के बीच फैला हुआ पुल.
निरंतर पूरा होने के लिये आतुर.



3 comments:

  1. प्रकृति को छोड़ के कोई भी पूरा न है न हो सका है .... पर इसके लिए प्रयास भी नहीं छोड़ा जा सकता ... आशाओं पर अन्कुश लगाना शायद ध्यान से ही संभव है ... अस्तित्व तो बस साँसों तक है ... सांस बंद ... शून्य की शुरुआत ...

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  2. सौ रोगों की एक दवा है...क्यों न आजमाये...ध्यान...

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