इस अनंत को---प्यार की
लकीरों से
बांधना ही होगा---
मैं,नीले समुंदर के
किनारे-किनारे
बालू की सफेद-ठंडी चादर पर
नंगे तलुवों को----सेकती रही
अनंत के क्षितिज को---
आती-जाती लहरों पर
नापती रही हूं---
कभी-कभी उकडू बैठ कर
दो उंगलियों से---उकेरती रही हूं
अनंत के क्षितिज को---
बालू की ठंडी चादर पर---
आती-जाती लहरों में
मिटते वक्त को पढती रही
हूं—
आज,कुछ दूर चल कर
पैरों के तलुवों को,गीला किया है
हाथों की मुट्ठियों
में,समेटा है
खारे समुंदर की नीलिमा को
आती-जाती वक्त की लहरों पर
एक मुस्कान देखी है,धुलती हुई
लकीरों में
बहुत हैं---खारे समुंदर
हर आंख में—
हर आंसुओं की
एक-एक बूंद में---
पर,उन्हें छूने के लिए
पर,उन्हें पढने के लिए
हथेलियों की ओस से
सेकने की जरूरत है---
खारे कितने भी हों समुंदर
इनमें भी मुस्कुराहटों की
लकीरे हैं
बस,बंद आंखों की पलकों से
चूमना होगा,इन्हें-------
इस अनंत को----
प्यार की लकीरों से,बांधना
ही होगा.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (04-03-2014) को "कभी पलट कर देखना" (चर्चा मंच-1541) पर भी है।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यार की चादर भी अनंत है, क्षितिज को समेट लेगा। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : स्वप्न सुनहरे
इस अनंत को----
ReplyDeleteप्यार की लकीरों से,बांधना ही होगा. ..
एक प्यार ही है जो बाँध सकता है इस अनंत से भी अनंत को ... प्यार कृष्ण है ... राधा है ... तो प्यार गोपियाँ भी है ...
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति की धारा ...
मन की अलौकिक उड़ान................बहुत खूब...............
ReplyDeleteमन की अलौकिक उड़ान................बहुत खूब...............
ReplyDeleteअनंत को बाँधना -सुन्दर कल्पना है !
ReplyDeleteअनंत से भी अनंत को बाँध सकता है प्यार
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE.पर आपका इंतजार रहेगा। शुभ रात्रि।
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