ऒशो---एक ऐसी धारणा जो
महासागर बनीं,असत्य की लहरों से टकरा कर,
अंततः,महासागरों के पथरीले तटों पर,जीवन के फूलों को महका
सकी.
अब,यह हम पर निर्भर है—हम उन महकों से सुवासित हों या तटों
पर बैठे—
लहरों को सिर पटकते हुए, देखते रहें.
१.----कृपया,रुकिये.प्याला पूरा भर चुका है.उसमें अब और चाय
नहीं आ सकती.
----------सत्य भरने के लिये,प्याले को खाली करना होगा.
२.पूरा आस्तित्व----प्रत्येक दिशा और आयाम से,ऊर्जा की
फुहार की तरह बरस उठता है----
उठिये---हाथों को फैलाएं,मुट्ठियां भर लें.
३.’तर्क’ से सत्य नहीं जाना जा सकता है.जब तुम ’प्रेम’ में
होते हो,तभी सत्य को जाना जा सकता है.
४.अंधकार की व्यथा से ही,नई सुबह का जन्म होता है,एक नया
सूरज उगता है.
५.मैं--- तुम्हें आकाश और स्वर्ग में उड कर जाने के लिये जो
कुछ देने जा रहा हूं , वह हैं---पंख.
दो शब्द---
हम में से
९९.९९ प्रतिशत,जीते हैं,सांसो का बोझ लिये.जीवन हर क्षण मर रहा है.हम दो प्रकार की
मृत्यु से गुजरते हैं-- एक जब जीवन चक्र
पूरा हो जाय,दूसरा---चलती सांसो के साथ मृत्यु को ढोते रहना.
कुछ ’जीवंत’ लेने के लिये हमारे पास खाली जगह ही नहीं
है.अपनी खुशियों से अधिक दूसरों की खुशियां हमें व्यस्त रखती हैं. ’प्रेम’ ,हमारे
जीवन से दूर होता जा रहा है या कि ’प्रेम’ के इंद्रधनुष को हम छू भी नहीं पाते
हैं,पाना तो दूर.
’तर्क’—एक ऐसा जहर,जो अमृत को भी विषाक्त कर दे.’तर्क’-ने
’प्रेम’ की हर सुंदर घाटी को निर्जर कर दिया है.
ऐसे अंधकार में एक किरण कहीं दूर क्षितिज से दिखाई देती
है---
जब,ओशो की देशना एक संदेश देती है---जो कुछ देने जा रहा
हूं----वह पंख हैं.
आएं,स्वीकार करें और नए आकाश में अपने पंखों के साथ,उड
चले---एक मुक्त जीवन की तलाश में.
मन के-मनके
@ओशो की देशना एक संदेश देती है---जो कुछ देने जा रहा हूं----वह पंख हैं.
ReplyDeleteऔर इस आकाश में उड़ने के लिए एक पंख चाहिए ध्यान का दूसरा पंख प्रेम का, फिर वह मुक्त आकाश हमारा है !
सुबह सुबह बेहतरीन पोस्ट पढ़वाने का आभार !
बहुत ही सुन्दर पोस्ट.......
ReplyDeleteआभार आपका..
अनु
बहुत गहरा है ओशो ज्ञान ...
ReplyDeleteतर्क से परे हो के दुनिया को देखना ... या तर्क ही करना ग्रहण ना करना ...
शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का। सहज सुन्दर विचार। जीवन दर्शन सार लिए हैं। ओशो का संसार लिए हैं।
ReplyDeleteओशो ने अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सहज बना दिया...
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