१.ओ----सुबह के,गुमनाम से राही,
मगर, अपने से----
आते हो रोज,बिना दस्तक दिए,
मेरे खामोश दरवाजों पर,
देखना----
कल यूं ही ना चले जाना!!!
मैं,अपने सपनों की बाडों को तोडकर—
आ बैठूंगी---डूबते तारों की छांव तले,
कुछ कहकर जाना---
सुन भी जाना---
२.रंगों की रंगोलियां---
सजा जाना---
मेरे दरवाजों की ड्योढी पर,
उन फूलों से---
जिन पर कभी नाम लिखे थे,मेरे,तुमने
इस बार दिवाली पर---
बहुत-बहुत बार मनाईं हैं,
सूनी-सूनी सी--- दीवालियां मैंने,
३.पट खोलने दो---
आती-जाती,
इन हवाओं के लिये
क्या पता----
ज़िक्र ले आएं मेरा,
जो होते हैं—मेरे,
मेरी पीठ के पीछे,
४.पट खोलने दो,
इन भंवरों की,
गुन-गुन के लिये,
क्या पता---
कुछ गीत हों---
मेरे लिये भी,
अपने हजार गीतों की
अनछपी किताब में से,
५.उम्र को यह क्या हो गया है!!!
रेत सी सरक रही है---
बंद मुट्ठियों की भिंची दरारों से,
वो भी-----
बे-आवाज!!!
बे-खौफ!!!
६. घर को अंधेरा कर----
घर के दिये को,
लेकर चली थी,
औरों के घरों को,
रोशनी दे दूं---
पर,वहां तो---
घर नहीं,गलियां नहीं,
शहर ही स्याह था,
और,मेरा दिया भी---बुझ गया,
’सच’ के,अंधेरों में---
७.यह जो,अंधेरा---
गहरा रहा है,
उम्मीदों के इशारे हैं,
वहां---क्षितिज के छोर से—
कोई,सूरज लेकर आ रहा है,
थोडा इंतजार ही सही---
मैं,इंतजार में हूं----
नुक्ता-चीनी----कभी-कभी,मन करता है,कुछ अपनी जिंदगी से भी कर ली जाय.
तो,पेश हैं---कुछ अंदाजे-बयां-और---कुछ की
हैं शिकायतें, खुद की खुद से ही.
पसंद आएं तो,कुछ कहियेगा जरूर.
मन
के-मनके
ये नुक्ता चीनी नहीं ... अपने आप से किये वादे होते हिन् जो अकसर अंधेरे में किसी एक सूरज की आस मिओं जलते रहते हैं ... और वो सीरज आता भी है ... सच का सूरज जो ढक लेता है हर निराशा को ...
ReplyDeleteअच्छा लगा ये अंदाजे बयाँ ...
दीपावली के मंगल पर्व की हार्दिक बधाई ...
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteसुंदर भाव !
ReplyDeleteहर लम्हा मन एक नया उड़न भरता है, एक नई मंजिल की ओर,जरुरी नहीं मंजिल वास्तविक हो पर उड़ान तो वास्तविक है --सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ