Sunday 20 May 2012

कुछ नुक्ते--- जीवन के गलियारों में से


१.सांझ की लहरों पर---
 उम्मीदों की कंदीलें हैं
जीवन की सुबह ढलकती
कुछ,साथ उजाला चलता है,
                कंदीलों की परिछांई में—
२. वैसे तो, किताबे-ए-ज़िंदगी
  खुली किताब है मेरी---
  हर्ज़ नहीं, पलटले वर्क इसके कोई,कभी-कभी
  फ़कत,एक पन्ना,मोड कर रखा है,मैंने
                       सिर्फ़ मेरे लिये---
३. एक खुशबू की-----राहे-गुज़र
  हम थे--------अकेले
  गुज़रे तो,हवाओं से मुलाकात हो गई
  हमें लगा कि------तुम ही गुज़र गए
                                      मन के--मनके
     



6 comments:

  1. वाह...अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें.

    नीरज

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  3. ज़िन्दगी एक बहती नदी की तरह है। इसका सबसे बड़ा गुण है कि ये कभी रुकती नही है irrespective of whatever hurdles it comes across..
    बहुत ही कोमल अनुभूतियों से रंगी हुई प्रस्तुति
    मेरे ख़यालात भी कुछ मिलते जुलते हैं
    "
    ये सजीला रंग भी है , मेघ की हुड़दंग भी है
    टिमटिमाते दीप की लौ की, तिमिर से ज़ंग भी है
    दोपहर की तपन है ये, शाम सिंदूरी यही है
    विवश बिछड़े प्रेमियों के बीच की दूरी यही है

    ये जो बारिश में कभी खुद को भिंगोकर मस्त होती
    कभी बूँदों को तरसती ज़िन्दग़ी कुछ और भी है
    धूप , बदली , रंज , मस्ती ज़िन्दग़ी कुछ और भी है
    सजी महफ़िल , लुटी बस्ती ज़िन्दग़ी कुछ और भी है "
    मैने हाल ही में लेखन के संसार में पदार्पण किया है। सबसे कनिष्ठ होने के नाते आप सभी वरिष्ठ जनों से आशीर्वाद और मार्गदर्शन की अपेक्षा करता हूँ।
    मन के मनकों से हमें कृ्तार्थ करें

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  4. वाह...!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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