Tuesday, 5 June 2018

आइये एक कहानी कहते हैं

दो मित्र अपनी -अपनी दुनिया में खुश थे .
दौनों के पास खेतिहारी की छोटी सी काश्तकारी थी,छोटा सा परिवार और इतनी खुशी कि,इससे अधिक चाहने की कोइ वजह भी नहीं थी .

परन्तु :
दूर से प्रारब्ध मुस्कुरा रहा था ,सोचा कि क्यों ना एक खेला खेला जाए.चलते हैं इनके सपनों में इनसे मुलाकात करते  हैं.

एक रोज मित्र नींद    से जागा तो बड़ी अजीब स्थिति थी उसकी.भ्रमित था ,समझ नहीं पा रहा था कि उसने कोइ सपना देखा है या कि हकीकत को जी रहा था.
खैर बैचेनी इतनी कि दौड़ा-दौड़ा अपने मित्र के पास पहुंचा .मित्र से कहा,मित्र एक विचित्र स्थिति है मेरी ,कृपया मेरी बात ध्यान से सुनना और मुझे बताना कि क्या सपनों की भी कोइ जमीन होती है.

मित्र ने मित्र की बात बड़े ध्यान से सु नी .वहा जिक्र था पिछली रात देखे सपने का.

दौनों मित्र खेतों की और चल पड़े यहसोचते हुए कि वहां शान्ति से इस सपने का अर्थ निकालने की कोशिष करेंगे.
सुबह से शाम हो गयी,दौनों अपने-अपने खैतो की बाड़ परा बैठे सपने की हकीका तलाशते रहे,और आखिर में दौनों  मित्र ने निर्णय लिया,हमें इस सपने की हकीकत के इम्द्रधनुष को देखना है.

सपना यहाँ था ,जैसा कि मित्र ने बताया सपने के बारे में .
रात जब गहरी नीद  में था वहा देखता है--एक सन्यासी के भेष में आये और कहने लगे---यहाँ तुम दौनों इस जमीन के छोटे से टू कडे पर क्या कर रहे हो.इसा समुंद्र के दूसरे किनारे परा एक बहुत ख़ूबसूरत टापू है.वहां के किनारे की रेता में चांदी के काना भी छुपे हुए हैं .धानौगाने के लिए वहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है मेरी मानो तो तुम्हें वहां चले जाना चाहिए.,और मित्र की आंख खुला गयी.

कहानी ने यूं मोड़ लिया.
दौनों मित्र रोजा सुबह अपने-अपने खेतों की बादोम परा बैठा करा यही सोचते रहते कि कैसे उस टापू तक पहुंचा जाया?
और एक दिन दौनों ने निर्णय लिया कि वे एक नाव बनाएंगे   इ सके खर्चे के लिए अपनी सभी जमा-पूंजी दांव पर लगा दी,यहां तक कि अपनी-अपनी पत्नियों के गहने भी बेच दिए .
 यात्रा की तैयारी शुरू हो गयी और कुछ ही दिनों में दौनों किसान अपने-अपने परिवार को लेकर नाव से उस टापू की यात्रा पर निकल पड़े.

 समुंद्र में कुछ दिनों तक उनकी यात्रा अबाधित चलती गयी और उनके सपने भी उनकी यात्रा के साथ-साथ खूबसूरत होते जा रहे थे.


एक सुबह जब सूरज की इम्द्रधानुषी  किरणें समुद्र की छाती पर अठखेलियां  करने लगीं तभी दूर क्षितिज के पार जमीन का एक टुकड़ा नजर आने लगा.
खुशी से वे सभी अहोभाव में डूब गए.

जैसे ही शाम घिरने को आई दूर क्षितिज से काले बादलों का पहाड़ सा उनकी और द्रुत गति से बढ़ता आ रहा था.हवाओं  ने भी तांडव  शुरू कर दिया.
देखते ही देखते,नाव के पाल उखड़ गए और छोटी सी नाव हिचकोले खाने लगी,
और उनके सपने भी हिचकोले खाने लगे'
इधर रात गहरा कर घिरा रही थी उधर तूफान भी उग्र होता जा रहा था,और सपने का तो कुछ अता-पता नहीं था बस था तो जाना को बचाने की चिंता.
और ,उधर भोर का सूरज बहुत शांति से जग रहा था जैसे कि पिछली रात कुछ हुआ ही नहीं था .
लेकिन जो हुआ वह अप्रत्याशित हो ही चुका था.नाव उलटी हो समुंद्र की छाती  पर हिचकोले खा रही थी नितांत.

समुद्र के तट  पर एक मित्र ओम्धे मुंह पडा था बेहोश  एक लकड़ी को अपने ठंडे हाथों से जकडे हुए..
धीरे-धीरे सूरज के ताप से उसके शरीर में गर्मी का संचार हुआ और उसकी आंख खुल गयी,अपने लड़खड़ाते पैरों से उठा खडा हुआ,नितांत .

आगे की कहानी के लिए हम सबको सोचना
होगा कि आगे क्या हुआ होगा .

धन्यवाद:

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ए.बी.ए. 

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