Saturday 23 July 2016

जो जीवन से चूक गया-स्वम से चुक गया.



शुभप्रभात:मित्रों
जितना है—वह काफी है.
मुट्ठी में जो है-वह हीरा है.
जो फेंक दिया गया-लौट कर नहीं आएगा.
अतः जीवन की झोली को बांधे रखिये-
वक्त के साथ-उसे खर्चिये भी.
आइये, आज की सुबह की शुरूआत करते हैं- ओशो की एक बहुचर्चित कथा से.
ऒशो:
मेरे प्रिय आत्मन,
अभी सूरज निकला भी नहीं था कि एक माझी नदी के किनारे पहुंच गया.
उसका पैर किसी चीज से टकराया,उसने देखा एक झोला कंकडों से भरा हुआ,
पडा था.
उसने अपना जाल निकाला और नदी किनारे बैठ गया-भोर की प्रतीक्षा में.
झोले में से एक-एक कर के पत्थर निकाल कर शांत नदी में फैंकने लगा.
और,धीरे-धीरे सूरज निकल आया,चारों ओर प्रकाश फैल गया-तब तक वह झोले में से सारे कंकड फैंक चुका था—आखिरी कंकड उसके हाथ में था-जिसे वह नदी में फेंकने ही वाला था-और सूरज की रोशनी में वह हीरे की नाईं चमक रहा था.
वह हीरा ही था!!!
माझी की सांस ठहर गयी.
वह अथाह खजाने को नदी में फेंक चुका था.
फिर भी,मांझी सौभाग्यशाली था,एक हीरा उसकी मुट्ठी में बच गया था.
जीवन के सबंध में हम सभी ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं.
जीवन एक   अद्भुत संपदा है-और हम नित-नित उसे कंकड समझ कर,एक-एक कर के जीवन रूपी नदी में फैंक रहे हैं.
सूरज का प्रकाश नित ही फैलता है-हम आंखों को बंद किये बैठे हैं.
जीवन रहस्यों से भरा पडा है—खूबसूरत खजाने हैं-आनंद की वर्षा हो रही है-और हम सूखे बैठे हैं,भीगते भी नही हैं,बारिश---??
जीवन से बडी और कौन सी मुक्ति हो सकती है-यदि जिया जाय तो??
मैं आपसे कहना चाहता हूं, जिंदगी जरूर हमें छोड कर चले जाना है,लेकिन जो असली जिंदगी है,उस छोडने का कोई उपाय नहीं—मकान बदल जाएंगे,दुकान बदल जाएगी,लेकिन जिंदगी?जिंदगी हमारे साथ होगी---.
मैंआपसे कहना चाहता हूं:जीवन के अतिरिक्त ना कोई पर्मात्मा है-नाही हो सकता है.
जीवन जीने के अलावा-कोई और रास्ता नहीं है.
जीवन के सौंदर्य के अलावा और कोई स्वर्ग नहीं है.
जीवन की बदसूरती से बढ कर और कोई बदसूरती नहीं हो सकती.
जीवन को साध लेना धर्म की साधना है.
जीवन के परम सत्य को अनुभव कर लेना,मोक्ष को पा लेना है.
जो जीवन से चूक गया,वह और सब से भी चूक गया,यह निश्चित है.
जो जीवन से चूक गया-स्वम से चुक गया.
सभार:संभोग से समाधि की ओर से.


8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-07-2016) को "सावन आया झूमता ठंडी पड़े फुहार" (चर्चा अंक-2414) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत दिनों के बाद
    याद आई है बात,कि
    क्भी गुजरे थे यहां से हम
    अपनों का पकड कर हाथ.
    ये जो आज—
    मन के-मनके बिखर रहे हैं,
    इधर-उधर—कभी,
    पिरोये थे मिलकर साथ.
    सो,धन्यवाद,नमस्कार.




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  3. sorry there is some error--the reply is published in multiple.

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  4. बहुत बढ़िया कहानी।

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  5. सच है ... जो पल रह गया है वही हीरा है ... उसे ही जीना समझ ले इंसान तो जीवन संवर जाये ... पर जो खो जाता है उसे ही जीवन समझता है इंसान ...

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  6. जो पल अभी है उसी में भरपूर जियो और धीरे से अगले में प्रवेश करो।

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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  8. Thank u sir,wld come as a friend not as critic,pllove,live liberate the matra of life.

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