१.’आप बुलाएंगे’-----तो जरूर आएंगे
इस ’बुलाने’---के इंतजार में---
’आना’ भी भूल जाता है---आने को
कि---बुलाया भी जाता है----
बगैर
बुलाए भी---
कभी-कभी—
२.’जिंदगी’ की फितरत में
हर ’मिलने’ का इशारा है---
कुछ---’अधूरे मिलने’ की ओर
और---जो
लकीरें----
छोड आएं
हैं,पीछे---अधूरी
उन्हें---पूरी करने की ओर—
३.अब,क्या
नाम दें—उसे
क्या
करें,बात उसकी—
हम खुद से
ही वाकिफ़ न थे
उसे,उसकी
क्या—पहचान दें
तरंगों की आवाजाही,
ReplyDeleteसंबंधों की रंगी स्याही।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती हुई ये अनकही ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद कोई पोस्ट दिखी है आपकी ..... बहुत सुन्दर |
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