सूखी माटी को----
आशाओं की बारिश से सिक्त करती रही---
सपनों की रंगों की, कूची से
रंग, भरती रही---आने वाले कल के
कुछ बीज---प्रारब्ध के थे
कुछ---वक्त के झोंकों ने भी
जो,बिखरा दिये थे---आंगन में, मेरे
उनको भी---चुन-चुन,बोती रही
कुछ बीज---दो पाती के साथ ही
कुमल्हा गये----हालांकि,
रंग तो भरा था---सुर्ख-हरा---
पता नहीं क्यों! पीले हो गये
कुछ बीज---दो पाती को ओढ
पाती की चादर को ओढ---
फैल गये---मेरे केनवास पर
चलो,कभी ऐसा भी होता है---
मैं,खुश थी----
कुछ
खोना ही था---कुछ पाने के बाद
पाती की शाखों पर-----
वक्त के बौर भी, बौरा रहे हैं
सुबह से शाम तलक---
प्यार की मनुहारों का---मेला भी था
तितलियों ने,पंखों में,रंग भर
रंगों को, और भी नाम---दे दिये थे
कुछ नये प्यार को----
नये---अंजाम दे दिये थे
हर दिन---,
केनवास पर---रंग बिखरते रहे
कुछ रंगों की तो, पहचान थी,मुझे---
पर,कुछ रंग, ऐसे भी थे----
जिनकी पहचान----
भंवरों की गुन-गुन---
तितलियों की,आंख-मिचोली
बौरों की बौराई----
कानों में---मेरे
चुपचाप कह गये
हर दिन----
केनवास पर---रंग बिखरते रहे
उंगलियों में,रंगों की कूची थामें
सपनों में भी---रंग,ढूंढती रही
सुबह होते ही---
केनवास पर---रंग,बिखरते रहे
एक दिन---
आंख खुली तो----
कुछ पत्ते---पीले-पीले से लग रहे थे
पातों की शाखों पर----
भंवरों की गुन-गुन भी,कम हो गई
तितलियों की आंख-मिचोली का खेल
अनमना सा---लग रहा था
बौरों की बौराई भी---उनींदी सी हो गई थी
सोचा----
कोई बात नहीं----
कभी-कभी---ऐसा भी होता है
गर्म हवाओं के झोकें---
बौरों
की बौराई---कहीं ले गये हों
कल सुबह---ठंडी हवा के झोंके,उन्हें
वापस ले आएंगे---
क्योंकि,
कभी-कभी---ऐसा भी होता है
रात सपनों में,रंगों को सहेजती रही
उंगलियों में---सपनों के रंगों की, कूची थामें
जब----
रंगों को भरने चली---
तो---
जो पाती---पीली थीं
शाखों से झर गईं थीं
उनकी जगह---कुछ और पाती
और भी, पीली-पीली हो गईं थीं
शाखों के नीचे---कदमों के तले
पीली पत्तियां---चरमरा रहीं थीं
वो आवाज---
भंवरों की गुन-गुन,
तो, न थी
बौरों की--- बौराई भी न थी
तितलियां
भी---तितर-बितर,हो रहीं थीं
पंखों के रंग---नये
नामों को---बिसरा रहे थे
अब---
नींद तो, गहरा गई है
पर---
सपनों की, आवाजाही
अब---
दस्तक कम दे रही है
जो---
कुछ कदमों की आहट
ठहर भी जाती है
मेरे---
सपनों की ड्योढी पर
पर---
बे-आवाज ही लौट जाती है
सुबह---
जागती हूं---
थामें---उंगलियों में
सपनों के रंगों की कूची
केनवास पर----
बिखरते-बिखर
हर रंग---
पीले पडते चले जाते हैं
अब---
हर रंग का,बस एक ही नाम है
हर रंग की, बस एक ही पहचान है
जो---
पीली-पाती पर, लिख
अगली सुबह---
शाखों के नीचे
कदमों तले
बिखरी स्याही की नाईं
फैल जाएंगे----
और----
भंवरों की, गुन-गुन
तितलियों की आंख-मिचौली
बौरों की बौराई----
सब----
चरमरा जाएंगे---
क्योंकि----
कभी
न कभी---ऐसा भी होता है
होना ही था---
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
--
सुखद सलोने सपनों में खोइए..!
ज़िन्दगी का भार प्यार से ढोइए...!!
शुभ रात्रि ....!
क्योंकि----
ReplyDeleteकभी न कभी---ऐसा भी होता है
होना ही था---
सच कहा....होना ही था!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढिया
यूँ ही जीवन ताने-बानों के बीच होकर चलायमान बनी रहती है ...मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
बहुत सुंदर..
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