द्वंद-निर्द्वंद-मन-क्लांत
निर्जन सा, आत्म-गहन
जीवन-सागर की लहरें,उदंड
पटक
रहीं,तट पर,मस्तक--
चाल-समय की—निर्मम
घायल सा—आस्तित्व-समग्र
घूम रहा है,समय-चक्र
जीवन-रथ की दिशा,बदल
सागर है,दिशा-विहीन
ओझल सा,भविष्य-क्षितिज
नीरव-रातें,दिवस-अभिशप्त
शशि-दग्ध,सूरज
कर रहा,भस्म
दृष्टि हो रही,अपरिपक्व
दृढ
निश्चय हो गए,शिथिल
खुली आंखों से हैं, दूर--बहुत
जीवन के सभी,भविष्य-पथ
मोती,माला
से,हो रहे--विलग
ढीले
पड गए,बंधन-अपनत्व
दिशाएं,गूंज रहीं,चीखों से
हर
प्रश्न,रह गए,पुनः-प्रश्न
समय ने, पलटी करवट
हवाएं,हो गईं,दावानल
अपनों के
स्पर्श---
अनमने----अव्यक्त
स्वप्न-सुप्त,संकेत-हीन
भविष्य-आशाएं,आस-हीन
प्रतीक्षा,अंत-हीन---
आगुंतक,राह-भटक---
रातें,स्वप्न-विहीन---
दिवस,श्मशानी-मौन
जीवन-सागर,गरज-गरज
लहरें तूफानी,दानावल---
करना होगा,सागर-मंथन
विष-अभिषप्त,पृथक-पृथक
बूंद-बूंद,जीवन-अमृत
पीना होगा,अंजुलि-भर
आंखें मूंद,कर-बद्ध---
नत-मस्तक,पूर्ण-समर्पण
चौखट पर,प्रारब्ध तेरे
जो मिल जाय,स्वीकार-भाव
जो दे
पाओ---तुम---
शिथिल
मुठ्ठियां,हो जाएं,बंद
भूले-भटके से पुण्य,मेरे
बन,’शिव’---हो जाओ-- प्रगट
दो बूंद,कृपा-अलख--तेरी
बन अमृत—पी—हो
जाऊं,मुक्त
चटके
हैं,कितनी बार---
सर
पटकती,लहरों से
जीवन-सागर के----
शांत-तट----
तब,तुमने ही आकर---
शांत किया,इन लहरों को
अपनी
आभा से,स्पष्ट किया
ओझल-ओझल
सा,भविष्य-क्षितिज----
बहुत प्रभावी शब्द निर्झर..
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
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अव्यक्त स्वप्न-सुप्त,
संकेत-हीन भविष्य-आशाएं,
आस-हीन प्रतीक्षा,अंत-हीन---
आगुंतक,राह-भटक---
रातें,स्वप्न-विहीन---
दिवस,श्मशानी-मौन
जीवन-सागर,गरज-गरज
लहरें तूफानी,दानावल---
करना होगा,सागर-मंथन
विष-अभिषप्त,पृथक-पृथक
बूंद-बूंद,जीवन-अमृत
पीना होगा,अंजुलि-भर
...
... ... ...
आंखें मूंद,कर-बद्ध---
नत-मस्तक,पूर्ण-समर्पण
चौखट पर,प्रारब्ध तेरे
जो मिल जाय,स्वीकार-भाव
जो दे पाओ---तुम---
भूले-भटके से पुण्य मेरे
बन ’शिव’---हो जाओ-- प्रगट
दो बूंद कृपा-अलख--तेरी
बन अमृत—पी—हो जाऊं मुक्त
अंतिम पंक्तियों तक पहुंचते-पहुंचते लगा जैसे भीषण तूफान के बाद सब-कुछ जैसे सहज-शांत हो गया ...
सोचता हूं - वाकई शब्द कितने समर्थ होते हैं!
आदरणीया डॉ. उर्मिला सिंह जी
सुंदर -सजीव रचना के लिए साधुवाद !
कमाल की संवेदनशीलता है !
व्यापक दृष्टिकोण से उत्पन्न भाव और ओजपूर्ण शब्द !
सार्थक रचना !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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