प्रीत की यह गागर—
भरती क्यों नहीं---प्रिये
सपनों से लेकर----
फिर, रात घनेरी तक---
रोज-रोज,रीत-रीत--
क्यों जाती
है,प्रिये!!!
सिंदूरी लाली ले----होठों पर
कली---रोज-रोज—सुबह—
पाती की झालर, टांक
नित-चूनर,उघाड-उघाड--
क्यों,प्रतीक्षा
सी—
हो
जाती है,प्रिये!!!
कली-कली,फूल-फूल पर
भंवरों की भटकन—
कौन प्यास बुझाने को
भोर-पहर, रात-बिछोही तक
क्यों,अनबुझी
प्यास—
बन
जाती है---प्रिये!!!
आली सी,नित छिटकती,शशिकला
और,रीते दीये में,बीती-बाती-सी
विरहन सी टिकी,सूनी देहरी पर
किस प्रियतम की राह देखती
क्यों-----बुझ जाती है
भोर-पहर-----प्रिये!!!
सात-अश्व का रथ हांके---
दहक-दहक,सदियों की राहों पर
हर-पल,क्लांत टपकता,मांथे से
पर,सांझ-ढले,सिंदूरी सागर में
क्यों,सो
जाता है,दिनकर
मुंह ढक कर-----प्रिये!!!
हर-एक
खिलावट,मुस्कानों की
ढलती
है,अश्रु-बूंद-बन---यहां
हर
मिलन,यहां, विछोही है—
हर प्रेम,
यहां, विद्वेषी है—
एक सांस
यहां आती है—
तो,एक
चली भी जाती है—
प्रिये,जब फूल खिले,मुरझाए ना
खिलना
भी,बेमानी है-----
प्रत्युत्तर प्रश्नों के----
पुनः-पुनः,प्रश्न
बन जाते हैं
प्रिये,यह गागर,रीत-रीत---
यूं,जाती है-----
भर कर जल छलकेगा, डर है,
ReplyDeleteछूकर दंश डसेगा, डर है।
क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर
कृष्ण जन्म अष्टमी पर हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.
ReplyDeleteएक एक शब्द मोती सा जडा.
आपको कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सात-अश्व का रथ हांके---
ReplyDeleteदहक-दहक,सदियों की राहों पर
इस संसार में अगर कुछ सत्य और शाश्वत है तो यही है ...
कृष्णजन्मअष्टमी की बधाई ...
बिल्कुल सही प्रश्न किया गया है इस रचना में.....
ReplyDeleteसुन्दर शब्द और लयबद्धता लिये हुए मोहक प्रस्तुति
वाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteये प्रेम की पाती बड़ी प्यारी लागे रे
ReplyDelete.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता !
आभार और मंगलकामनाएं !