ठगी के तरीके
दोस्तों’ठगी’ शब्द से हम सभी भली-भांति परिचित हैं.
इतिहास गवाह है-बनारस के ’ठग’.
पूरा अंग्रेजी तंत्र परेशान था-इस तंत्र को उखाडने में.
इतिहास के जानकारों ने इस अध्याय को भली-भांति
पढा होगा और इतिहास के क्षात्रों ने इस अध्याय को रट्टा लगा
कर तैयार किया होगा-
लेकिन किस्सा मजेदार है,ठगी का-मुझे हमेशा पसंद आया.
यह कहना कठिन है-कि इस अध्याय से परीक्षा में कितने प्रश्न
फंसे.
लेकिन आप और हम यह ना समझे –यह किस्सा यहीं खत्म हो गया या
कि अंग्रेज इस किस्से के खात्मा करने में सफल ही हो गये,नहीं जी.
कहते हैं ना-कोई भी किस्सा समूल नष्ट नहीं होता वक्त के
साथ-उग आता है-अपनी नयी टहनियों के साथ.
एक किस्सा इसी किस्से से निकला और हम उसमें ठग ही गये.
आज कल गरीब लडकियों की शादियों में सहयोगी बनने का सगूफ़ा
खूब प्रचलित है—
इसके कई कारण हो सकते हैं—
हम अभी भी उम्मीद लगाये हैं कि मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा
सो गरीब लडकियों की शादी में ५ हजार दे कर स्वर्ग में अपनी सीट बुक करवा लेते
हैं-एडवांस बुकिंग.
एक कारण यह भी हो सकता है—हमारी नई-नई अमीरी को कोई नजर भर
देख तो ले,कम से कम.
एक कारण यह भी हो सकता है—
कि रुपये को चालाय मान करते रहें.
शायद मेरा अनुमान गलत भी हो सकता है,क्षमा करें.
अब कल ही बात है-ऐसी ही एक शादी में जाना हुआ,हालांकि उस
शादी में जाना ना ही मेरा कर्ज था और ना ही मेरा फ़र्ज.
मेरी परिचिता ने गरीब कन्या की शादी में ५ हजार देकर स्वर्ग
में अपनी सीट बुक करा ली थी-उनकी मेहरबानी थी जो हमें भी साथ लगा लिया-एक कहानी याद
हो आपको-एरावत की पूंछ पकड कर स्वर्ग जाने की.
लेकिन मार हमें झेलनी पडी गाडी हमारी,पेत्रोल हमारा ड्राइवर
की दहाडी हमारी-हमने सोचा कि सौदा मंहगा नहीं है-यदि स्वर्ग देख कर ही लौट
आएं-क्या हर्ज है-
फ़र्क क्या पडता है-यदि एरावत की जगह चार-पाई हो-मेरा मतलब
गड्डी हो-जमाना बदल गया है-बदल रहा है-जी
चूंकि ५ हजार तो गरीब कन्या के पिता के काले बेग में चले ही
गये सो वे तो निंश्चित थे-हमें लग रहा था कि स्वर्ग जाने से पहले दावत ही चख ली
जाय तो क्या बुरा है-मुंह मीठा हो जाय.
और,वहां गरीब कन्या के पिता को जैसे-तैसे ढूंढ कर निकाला
गया-और उनकी नीयत का फैलाव फैलता ही जा रहा था-कन्या के सामने ले जा कर खडा कर
दिया—और हम चेत गये-और लिफाफों की दरकार से.
सो,वहां से भाग खडे हुए-बहुत हुआ,स्वर्ग का लालच.
पहले इस दुनिया को तो भुगत लें.
हद हो गयी एक गोलगप्पा भी नसीब नहीं हुआ-
और साहिब हम से बडा लालची भी आपने कोई और देखा नहीं
होगा-चले गये स्वर्ग पाने-पांच हजार में?
खैर,अकल तो अनुभवों से ही आती है.
एक बात और-गरीब कन्याएं पैदा ही क्यों की जाती हैं?
यह २१वीं सदी की ठगी है?
ध्यान रखियेगा खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता,
और, गरीब कन्या की शादी कराने से भी स्वर्ग नहीं मिलता.
स्वर्ग तो एरावत हाथी से दूर रहने से मिल सकता है-
शायद?
धन्यवाद:
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