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Friday, 19 December 2014

Drop This God---Start your Journey with the search for bliss.


    
ओशो—एक धारा बह रही निरंतर—किनारे बैठ कर स्नान का आनंद कैसे लिया जाय---सोचने की बात है???

लाखों करोंडों जीते हुए मर जाते रहें हैं---बगैर पिये जामों को चटकाते रहे हैं,कांच के टुकडों पर पैरों को लहूलान करते रहें और खुदा की खोज करते रहे हैं खुद ही मार कर उसको.

अभी हाल की एक त्रासदी को श्रधांजलि दो  शब्दों से देना चाहती हूं—वैसे तो किसी बाग-बगीचे के फूल भी काफी नहीं हैं---इन त्रासदियों की मजारों पर फूल चढाये जा सकें???

कुछ पंक्तियां---ओशो के हृदय से निकली हुईं.

क्षमा करें जो ओशो ने कहा है—नया नहीं है---निःसंदेह अनुभूतियां ओशो की सांसो में पगीं हैं---अनुभूतियां का यह संसार है---और हम ना जाने कैसे इनसे अछूते से रह जाते हैं???

इस संसार में हर कोई खुशियों की तलाश में है---केवल एक ही खोज है जो निरंतर है---शाश्वत है.

एक ही प्यास है जो बुझती ही नहीं किसी भी श्रोत से???

ओशो---यहां तक कि वृक्ष  भी जमीन से आकाश की ओर देख रहा है, केवल खुशी की तलाश में.

हर परवाज की हर उडान,पशुओं के पैरों की चाप----चाह है, केवल खुशी की.

सम्पूर्ण आस्तित्व यहां तक कि मौन पाषांड वे भी उगते हुए सूरज की नारंगियत में मुखरित हो उठते हैं---खुशी की तलाश में.

ओशो---अधिकतर,बिना खुशी को पाये ईश्वर की तलाश में निकल जाते हैं--- क्योंकि---ईश्वर भी वहीं टिक पाता है--- जहां आनंद है.

अपनी खोज को समझना होगा,वस्तुतः हम सभी आनंद चाहते है—एक ऐसी खुशी जो हमें स्वम से जोड दे.

यहां हर कण इसी शाश्वत की खोज में है,यही ईश्वर है,यही खुदा है---

सो अपनी खोज को समझना होगा बिना किसी लाग-लपेट के.

और---हो सकता है---खुशी गंगा की धार सी---हमारे दरवाजे तक स्वम ही आ जाय यदि हम सही खोज में हैं.

ओशो---हम इस संसार में इसी खुशी की तलाश में हैं---हमें समझना होगा---और ईश्वर भी वहां ही है--- जहां आनंद है.

जल्दी ना करें भगवान----खुदा की खोज की.

यात्रा की शुरूआत सही स्टेशन से होनी चाहिये----आनंदम---और---ईश्वर---पूर्णता.

हिंदू,मुसलमान---मजहबी इबारतें---सभी इस खोज में लगी हुई हैं--- ये हमारी फितरतें हैं कि हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि सिर्फ़ अपने लिये खुशी खोजने लगते--- ताबूतों

 में फूल नहीं खिलते---शमशानों की धहकती राखों पर बागीचे नहीं रोपे जा सकते???

और हम ईश्वर की खोज में लग जाते हैं उस खोज में जिसको हम जानते तक नहीं.

क्या हम ईश्वर---खुदा को जानते भी हैं----???

हां---निःसंदेह आनंद को हम अवश्य जानते हैं.

सो---उसे ही ढूंढिये जो जाना जा सके.

सो---उसे ही पाने की कोशिश की जानी चाहिये---जो पाया जा सके.

रंगों के इंद्रधनुषों को देखने के लिये नजरों को बदलने की जरूरत है.

लहू का सुर्ख रंग हथेलियों को धूप में रख कर---देखिये---नीली नसों से झिलमिलाता सुर्ख रंग---अपनी ही हथेलियों को मन करने लगता है---चूम लें.

हथेलियों को चीरती हुई गोलियां सुर्खी को बदरंग कर देती हैं.

हर रंग की अपनी एक रवांनगी है---पहचानने की जरूररत है.

शायद---बंदूकों को दफ़्न कर---प्यार और खुशी की फसल बोनी होगीं.

अब---खेती की जमीने सिमटने लगी हैं---पहले जैसे बागीचे भी कम नजर आते हैं---पहले जैसी तिलियां भी कम दिखती हैं---चहचहाटें---दूर होती जा रही हैं---

आएं----भगवान को आराम करने दें---

अपने घरों को फिर से सजाएं---

निःसंदेह---आनंद की झूमरों से.

सादर-साभार---ओशो( Voice Of Silence )