मनुष्य एक बीमारी है---
मनुष्य एक बीमारी है. मनुष्य को छोड़ कर और कोइ पशु पागल होने की क्षमता नहीं रखता है.
कोइ पशु ह्त्या नहीं करता , आत्महत्या नहीं करता.
यही उसकी खूबी भी है ,यही उसका दुर्भाग्य भी है.
इसी रोग ने मनुष्य को सारा विकास भी दिया क्योंकि, इस रोग का मतलब है, हम जहां हैं,
वहां राजी नहीं हो सकते.
एक कहानी से इसा बात की शुरूआत करते हैं और समापन भी करते हैं.
एक पागलखाने का परिदृश्य यूं चल रहा है---
एक कठघरे में एक पागल सींकचों में बंद है, एक तस्वीर को अपने सीने से लगाए हुए ,कुछ गीत गा रहा है.
पूछने पर पता चला--कि, इसको किसी स्त्री से प्रेम था वो इसे मिला नहीं पाई और यह पागल हो गया.
दूसरे सींकचे में बंद दूसरा पागल सींकचों में सर मार रहा था,जोर,जोर से रोये चला जा रहा था.
पूछने पर पता चला--इसको वही स्त्री मिल गयी जो पहले पागल को नहीं मिल पाई थी.
आदमी सब बीमारियों से मुक्त हो कर भी ,आदमी होने की बीमारी से मुक्त नहीं हो पाता.
ओशो से लिया गया, साभार सहित.