मन के - मनके

Friday, 11 July 2025

क्या फर्क पड़ता है

›
                                                              नमस्कार                                                    नमस्कार, आप सभी को ...
Saturday, 11 January 2025

हम सभी बेचैन से हैं न

›
अभी कुछ दिनों से मैं अपनी कजिन के घर आई हुई हूं, वजह कुछ खास नहीं बस अपनी खामखाह की बैचेनी को की कुछ कम करने का इरादा था और अपने मन को हल्का...
1 comment:
Monday, 12 June 2023

›
                                                                                                          चिट्ठियाँ  अब  आती  नहीं          ...
1 comment:
Thursday, 1 June 2023

›
                                                   प्रेम एक सेतु है---             महान सम्राट अकबर ने भारत की एक छोटी सी लेकिन बहुत  ख़ूबसूर...
Tuesday, 9 May 2023

›
                             आइये एक कहानी कहते हैं----  मल्टीमीडिया के आने के बाद हमारे जीवन से कहानियां कहने व सुनाने का रिवाज ही लुप्त हो...
Saturday, 3 September 2022

›
        नशे  ,नशे  में  फर्क  नहीं        फर्क  है तो ,  असर  नहीं                                       नशे,नशे  में  फर्क  नहीं,फर्क  है  ...
Wednesday, 31 August 2022

›
                                         नीले ,पीले  ,सफेद , गुलाबी  फूलों वाली  घास और  गुब्बारों  वाले  फूल    अब क्यों  नज़र  नहीं  आते  ?...
6 comments:
›
Home
View web version

About Me

My photo
मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
View my complete profile
Powered by Blogger.