कुछ स्वर्ग
कुछ स्वर्ग--
जेबों में पड़े
खोटे सिक्कों की तरह
कुछ देर ही
खनकते हैं,बस--
कुछ स्वर्ग----
यादों में बस
ता- उम्र---
रहते हैं,हमसफ़र!!!
आइये, दशहरा चला गया, दीवाली को कह कर----
जल्दी से पहुँचना लोगों की जिन्दगी में,अन्धेरा ज्यादा ना घिर आए कहीं.
घर,घर दीप जला देना,स्वाद मिठाइयों के भर देना सबके मुंह में,,क्योंकि बहुत अन्धेरा घिर आया था, कुछ और ज्यादा उजाला ले कर जाना ,इस बार, कुछ और ज्यादा मिठास भर देना जिंदगियों में, धन्यवाद.
आइये, याद करते हैं--साथ,साथ उन दशाहरों को, उन दीवालियों को---
दशहरा जब आता था---
गली, मोहल्ले ,नुक्कड़, नुक्कड़
सीता, राम,लखन भय्या
उनके साथ भक्त हनुमान
रावण ,कुम्भकर्ण का वध करने
ले अवतार ,प्रगट हो जाते थे.
जब, तरकश से बाण छोड़
दुर्जन पर करते थे,वार, राम
तब,---
एक, एक वार पर
होते थे , लख , लख
उदघोष ,राम .
अभी,---
दशहरा विदा हुए नहीं, घरों से
लडियां दीवाली की
टंक गयीं ,घरों में
मिट्टी के छोटे, छोटे दीयों में
लगीं दमकने
भीगी बातीं , तेलों में.
घर , घर , रिश्तों , नातों का
आना, जाना रहता था
बेसन के लड्डू और इमारती
घर , घर, थाला सजातीं
थाल भरा, मिठाई का
भर , भर, खाली होता था.
अब--- दृश्य बदल गए हैं.वक्त जो आगे चला गया.
दूर खडी पांत समय की
लगती है,इन्द्रधनुष सी ,क्यूं?
आज---
धूप ,चांदनी सी, जीवन की
लगती , अंगारी सी क्यूं?
एक ,धूप का फैला आँचल
कर जाता---
मन को घायल ,क्यूं?
एक , धूप बबूल कटीली सी
बन जाती , मां का आँचल ,क्यूं?
मेरी पुस्तक-- बिखरे हैं , स्वर्ग चारों तरफ---से चुनी गयीं ,कुछ पंक्तियाँ.
आशा है,,पसंद आएंगी.
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
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