Monday 28 September 2020

 प्रारब्ध:

गंतव्य से आगे--

कलिंगा पर आक्रमण मानव संहार की पराकाष्ठा की  परिणिति में हुई.

निःसंदेह कोई भी होता वह विचिलित हुए ना रहता,सो ,चक्रवर्ती सम्राट अशोक भी एक मानव के रूप में इस धरती पर जन्में थे,सो वे भी विचलित हुए.

और, पराकाष्ठा हुई ,उनके मोहभंग में.

जीवन के प्रति नहीं वरन जीवन के मोहजाल के प्रति!

और, वे भगवान बुद्ध की शरण में चले गए.

जाना ही था!

औरअशोक को ही जाना था.

क्योंकि,

प्रारब्ध ने अशोक को ही चुनना था.

अशोक का प्रारब्ध,अशोक को लेकर उस पथ पर चल पडा था,जहां से बुद्धत्व की शाखाए इस धरती पर फैलनी थीं ताकि,क्लात,थके मानव को ठंडी छांव मिल सके.

बुद्ध की शरण में जाकर अशोक ने भगवान के संदेशों को संसार के सुदूर पूर्व,पश्चिम व दक्षिण  के देशों तक पहुंचाया.

अशोक के इस कार्य को आगे उनके पुत्र महेंद्र वा पुत्री संघमित्रा ने अपने जीवन को बुद्धतत्व के वट वृक्ष की जड़ों कोसिंचित करने में लगा दिया.

इतिहास की पुस्तकों मेंअशोक के जीवन के  अंतिम दिनों के विषय में कुछ विशेष विवरण नहीं मिलता है,निःसंदेह

अशोक बोद्ध विक्षु हो गए होंगे!

बुद्धा की शरण में जाने के पश्चात जब,जब सम्राट अशोक का उल्लेख किया गया ,मैंने उनके नाम के आगे उल्लेखित

सभी विशेषणों को हटा दिया है.जब मानव मुक्त होता है तो सर्वप्रथम उसे सभी अलंकारों से मुक्त होना होता है,चाहे वे स्वर्ण के हों,पद के हों या प्रतिष्ठा के.

अभी मेरी बात


जारी है,अगली पोस्ट में पूरी करने का प्रयत्न करूंगी.




 





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