Friday, 20 April 2012

मिलिअन डालर—Question Number-- 3


वही,सज्जन,जो डालर की धरती पर,२० मकानों के मालिक हैं.
अपने मुहल्ले के( जहां उनका जन्म हुआ, बचपन बीता,जवानी के भी कुछ वर्ष व्यतीत हुए) पडोस के एक घर में कुछ दुखदः घटनाएं होती गईं,अंततः,उनके परिवार में कमाने वाला कोई नहीं रहा,सिवाय,विधवा पत्नि,विधवा बहू व एक शादी योग्य कन्या के,जिनसे,पडोस का हर परिवार करी्ब६० वर्ष से हर-रूप में सहभागी रहा.ऐसी परिस्थिति में वे ही लोग इस मानवीय त्रासदीय को
चटकारे ले कर किस्सों का रूप दे रहे थे.हनुमानजी के रिण से तो मुक्त हो रहे हैं,लेकिन जो जीवित भगवान,उनके घरों की दीवार से लगे सिसक रहे हैं,उनके लिये भविष्य के लिये कुछ आश्वासन भी नहीं हैं,उनके पास.
भगवान ही जाने,२०-२० मकानों का क्या करेगें,रहने लिये तो १०+१० फ़ीट की छत ही काफ़ी है.
और,यदि,बच्चों के लिये इतना छोड कर जाएंगे तो,आखिरकार,ताउम्र,बच्चे करेगें क्या?

Saturday, 14 April 2012

मिलिअन डालर—Question Number--2


यह कोई किस्सा नहीं है,ना ही,किसी पर व्यंग,जीवन का एक कटु सत्य जो हमारे चारों ओर.केक्टस की तरह उग आएं हैं,जो थोडे बहुत फूल थे राहों पर,वे भी इन केक्टस के कांटों से बिंध गये हैं.
मेरे ही परिवार की आदरणीयां महिला के तीनों बेटे ,सौभाग्यवश या अपने प्रारब्ध के प्रितिफल के कारण,अमेरिकीवासी हैं,और डालर की छत्र-छाया में, जीवन-यापन कर रहें हैं.
कुछ वर्ष पूर्वे,वे बिचारे रुपये की छत्र-छाया में ही जी रहे थे,और,लक्षमी के उपासक थे.
आज,वही लक्ष्मी माई हेय हो गईं,डालर के सामने.
उनके बडे बेटे के,डालर की दुनिया में बीस मकान हैं,और,वे ईश्वर को धन्यवाद देते नहीं थकते ,कि, वे ही इस अनुकम्पा के सुयोग्य पात्र हैं.
इसी अनुकम्पा के रिण को चुकाने के लिये,हनुमानजी के मंदिर में १००० रुपये की पूडी-सब्जी(मुश्किल से ३० सेन्ट) १५-२० लोगों के भरे पेटों में डालने की अनुकम्पा कर रहे थे,शायद यह सोच कर कि भगवान के रिण से वे मुक्त हो जाएंगे.
भगवान के सामने भी,डालर की चार-सो बीसी से बाज नहीं आये.
अब,हनुमान जी की विशेष अनुकम्पा का एक और उदाहरण—
जब वे हनुमान जी को माला चढा रहे थे,तभी,किसी ने पीछे से धक्का दे दिया,और,माला सीधे हनुमानजी के चरणों में गिर गई.
अब कोई भी संदेह नही रहा,उनके ऊपर,हनुमान जी की ,विशेष अनुकम्पा है.
वाह री,आस्था,भगवान को भी चूना लगाने से बाज नहीं आती है.

Thursday, 12 April 2012

मिलियन डालर- Question


विभिन्न देशों में,विभिन्न करेंसी का प्रचलन है—विनिमय के उद्द्येश्य से.
हमारे देश में,आज़ादी के के कुछ वर्ष पहले तक,ग्रामीण क्षेत्रों में बारटर सिसटम की प्रणाली भी कायम थी,जो शनेः,शनेः,उद्ध्योगीकरण के फलस्वरूप विलुप्त भी हो गई.
उद्ध्योगीकरण के फलस्वरूप ,देशों की दूरियं भी कम होती चली गईं, और, वैश्वीकरण की अवधारणा ने जन्म लिया.
परंतु यह सब चलता रहा,दुनिया की अर्थ-व्ववस्था,एक स्तर से दूसरे स्तर पर कदम रखती चली गई,हर देश की एक निश्चित मुद्रा,(’करेंसी’ )अपने आस्तित्व में,विशिष्ट व मजबूत होती गई.
परंतु,प्रत्येक देश की मुद्रा की कीमत,केवल,डालर की तराजू के पलडे में ही रख कर,आंकी जाती है.
हालांकि,गाहे-बगाहे,हमारे देश का गरीब रुपया भी,थोडी सी उछाल ले कर,डालर पर हावी हो जाता है,परंतु,दूसरे दिन ही अपनी वस्तुस्थिति में आ जाता है,या, यूं, कहें कि अपनी औकात पर आ जाता है.
खैर,कुछ घंटे ही सही,हम भारतीय,एक गुमान लिये,अपनी-अपनी मुंडी को,कुछ ऊंचा कर ही लेते हैं.
बेशक,करेंसी के ट्रेक पर हम हांफ रहे होते हैं.
अब,देश की वह भाग्यशाली पीढी,जो अपने माता-पिता की जीवन भर की तपस्या के फलस्वरूप, ’डालर’ की छ्त्रछाया में पहुंच गई या हो सकता है,उनका  प्रारब्ध ही जोर मार गया ,और, वे भी,डालर की दुनिया में, सात समुंदर पार कर गये.
पर,कुछ भी हो,भारत का गणित अपने साथ ले जाना नहीं भूले.
जब भी,माटी की सुगंध उन्हें बुलाती है,या यहां की चिल्ल-पौं,जिसमें उन्होंने अपने कुछ वर्ष गुजारे,गाहे-बगाहे,वे उन दिनों को कोसते अवश्य हैं,फिर भी उनके आकर्षक से वे मुक्त नहीं हो पाते हैं,और,अमेरिकी ’माल’ से खरीदे,सूट्केसों को रोल करते हुए,भारत की धरती पर कदम रख ही देते हैं,और कदम रखते ही,भारत का गणित जो सुसुप्त अवस्था में पडा होता है,तुरंत,जागृत हो जाता है,और फिर,एक बिसलरी की बोतल जो महज़ १२ रुपए की होती है वह भी उन्हें,सेन्ट की नज़र आने लगती है.
५०रुपए का बर्गर,१डालर का नज़र आने लगता है,गुणा-भाग के चक्कर में भूल जाते हैं,जिस माटी की महक,उन्हें १०,००० किलो मीटर की यात्रा करा कर,सात समुंदर पार करा कर यहां तक ले आई,जिसके लिये,उन्होंने,२-३ वर्ष छुट्टियों की बचत की,बाकी रह गई,डालर की पकड.
जो,जकडे रहती है,ताउम्र,कमाते डालरों में हैं,और,खर्च रुपयों में करते हैं.