चिट्ठियाँ अब आती नहीं
१. चिट्ठियां अब आती नही
चिट्ठियां अब जाती नहीं
कलम से स्याही छिटक गयी , कहीं
दिलों के लफ्ज भी अब सूख गए हैं.
२. लाल डिब्बे का सुर्ख रंग
धूप में बदरंग हुआ जाता है
हर रोज " अनुमा"
पीले पोस्टकार्ड की अकड़
ढीली पड़ गयी है
नीले लिफ़ाफ़े पर
ख़त लिखने की वजह
बेवजह हो गयीं
वो हिसाबी ,किफायती नजर के पैमाने
अब रुखसत हो गए हैं
जो , कागज़ के मोड़ों पर भी
अपनी फ़िक्र अपनों के लिए लिख कर
कमजोर चश्मों में डबडबाई आँखों को
और कमजोर किये जाते थे .
३. चिट्ठी आई है , क्या
चिट्ठी लिख दी है, क्या
अब इस बात की फ़िक्र
परेशां कहाँ करती है .
बरसों की बिछड़ी
किसी बाप की चिट्ठी,
छप जाती कहीं किसी
अखबार के चौथे पन्ने पर
पर, लिखने वाले का पता,
लिखने वाले के साथ बेवजूद हो गया है.
और, पाने वाले लिखने वाले का नाम भूल गए.
४. एक तार हुआ करता था
हर घर के एक कोने में
जंग लगी कील पर लटका ,
पांच सेर के बोझ को साधे
वो बोझ था तीन, चार पीढ़ियों के प्यार का,मनुहारों का
शिकायतों का ,फटकारों का ,माफीनामों का
शादियों के निमंत्रणों का ,राखियों के भिजवाने का,पाने का
नमस्कारों का,चरन्स्पर्शों का ,आशीर्वादों का
यहाँ सब कुशल है ,आप सभी की कुशलता की कामनाओं का
और क्या लिखूं ,थोड़े को बहुत समझना ,बाकी आप सब समझदार है
और, आग्रह पत्र का उत्तर शीघ्र देना जी,प्रतीक्षा में---
आपका ,आपकी ,तुम्हारा ,तुम्हारी के ढेर सारे नाम ,उपनामों का बोझ
जहां वर्षों पुरानी चिट्ठियों में ये सब चेहरे नजर आते थे,
उनके , जो कभी हमारे बीच थे ,हमारे अपने .
धन्यवाद ,चिट्ठियों वाले तार .
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18 दिसंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर
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