मन के - मनके

Thursday, 26 August 2021

धवल हंस किसका

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                                              धवल  हंस किसका--- नैतिक शिक्षा एक विषय हुआ करता था , कुछ दशक पहले तक  प्राथमिक  पाठों में एक क...
Thursday, 19 August 2021

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सुख--सुविधाएं--- कुछ दशक पहले तक दिन में कई,कई बार बड़ों के पैरों तक झुकना होता रहता था--कई,कई बार आशीर्वाद भी मिल जाते थे. अब ना झुकना होता ...
Sunday, 15 August 2021

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ग्रेनीज हाउस----- पिछली बार जब मैं अपने छोटे बेटे के यहां सिडनी,आस्ट्रेलिया उनके परिवार के साथ कुछ वक्त गुजारने गयी हुई थी. वहां का मौसम कभी...
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Tuesday, 3 August 2021

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                                                                            संवेदनशीलता बनाम  असंवेदनशीलता----- करीब ४०,५० वर्ष के छोटे से अ...
Monday, 2 August 2021

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                                     संवेदनशीलता बनाम असंवेदनशीलता---- घटना कुछ वर्ष पूर्व की है. मुझे एक परिवार के साथ रेल के सफ़र से अपने श...
Saturday, 8 May 2021

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                                    अमलतासी झूमरे देखी हैं,आपने? वो,अमलतास की पीली,पीली झूमरे,लगता था जैसे सूरज फूट पडा हो अपनी धधक को लेकर,...
Friday, 7 May 2021

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 आइये,इस महा कोरोना काल से थोड़ी देर के लिए मुहब्बत की दुनिया में चले. मुझे लगता है,यह जो सबब है जिसे प्यार,प्रेम, मुहब्बत ,लव और दुनिया की ह...
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मन के - मनके
मेरा परिचय तो,अभी अभी ही बना है-’मन के- मनके’के माध्यम से!फिर भी,औपचारिता निभाते हुए-इस ’परिचय’को श्ब्दों में गूंथने की कोशिश कर रही हूं!इंन्सान का’मन’ऎसी गीली मिट्टी की नाई होता है,जंहा’अनुभूतियों’के बीज गिरते रहते है,पल्लवित होने के लिए!इसके लिए’सम्भावनाओं’की बयार बहने की देरी है और’महक’उठती ही है-चारो ओर फैलेगी ही!यह कहना कठिन है-मेरी’अभिव्यक्तियां’किस महक को लेकर हवा मे फैल रही हैं!मै,जीवन को सबसे बडी और अहम पाठशाला मानती हुं सो उसमें मेरा प्रवेश जारी है!औपचारिक डिग्रियां कागजी आवराण में सिमट कर एक फाइल में रखी हुई हैं!ग्रहस्त जीवन की उपलब्धियां पूर्ण हैं कुह नाकामियों के साथ!मै,भाग्यशाली हूं -जब आखें मूंदती हूं तो’नानी जी’’आम्मा जी’के सम्बोधन,की स्वर-लहरी कानों को झंकारित कर देती है हर जीवन मे एक’खालीपन’होता ही है सो वह (खालीपन)रंग भी जीवन के कैनवास पर चढ़ चुका है!अब एक कोशिश मे जुट गई हूं-कुछ नये रंग खोज रही हूं जिन्हे उस कैनवास मे भर सकूं!ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उसकी अनुकम्पा से मुझे यह अवसर मिला!अब,कुछ अनुभूतियों शेष हैं या यूं कहें कि अभी भी कुछ’अनुभूतियों’ मन की गीली मिट्टी पर फूट रही है- जो अभिव्यक्ती चाहती हैं साथ ही आप सभी की ओर दो शब्द- ’वाह-वाह’ के मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
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