आइये,इस महा कोरोना काल से थोड़ी देर के लिए मुहब्बत की दुनिया में चले. मुझे लगता है,यह जो सबब है जिसे प्यार,प्रेम, मुहब्बत ,लव और दुनिया की हजारों भाषाओं में इस सबब को किस,किस रूप में कहा जाता है,सुना जाता है,समझा जाता है ,यह चर्चा का विषय नहीं हो सकता.
पर,इसी पर टिकी है,यह कायनात.
मैं अपनी बात कहती हूं,गौर कीजिएगा---
ऐ! मुहब्बत मेरी,
तेरी हर बात पर
रोना आया मुझको.
ऐ! मुहब्बत मेरी,
तेरी एक बात पे
हंसना आया मुझको.
गुडियों के दुपट्टो पर
टाकते सितारे,चांद संग
झिलमिला आई थी
एक बूंद,सुर्ख में,तू.
साल अभी ग्यारहवा लगा भी ना था
बारहवीं की तैयारी अधूरी
तेरहवी के पहले पायदान पर
पांव जैसे ही मैंने रखा
सरक आई मेरी धड़कनों में तू.
एक बार,एक सफ़र
रेलगाड़ी का था
लेटी थी करवट लिए
नीचे की बर्थ पर
दो और दो चार जब
खिंच गए एक डोर सी बन
उतर आई बे-आवाज
मेरे सपनों के सफ़र में,तू.
सुबह की होंन में जब
ठहर गया था ,सफ़र
खुली खिड़की से देखा
उतर रही थी,
पक्के प्लेटफार्म पर
मेरी हजार हसरतों को लिए
काले से बेग में,तू.
पहचान मेरी,तुझसे
बरसों पुरानी है
मैं पुरानी हो गयी बेशक
मगर, अब भी नई सी है,तू.
ऐ! मुहब्बत मेरी, तेरी
हर बात पे रोना आया, मुझको
ऐ! मुहब्बत मेरी ,तेरी
एक बात पे हसना आया, मुझको.
सकारात्मकता की ओर बढ़ते कदम ....
ReplyDeleteधन्यवाद.
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